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156... तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक
के माध्यम से देश को स्वतन्त्र कराया । वस्तुतः तप साधना भारतीय संस्कृति का उज्ज्वलतम पक्ष है और उसके बिना भारतीय संस्कृति में पल रही जैन, बौद्ध या हिन्दू संस्कृति ही क्यों न हो, समुचित रूप में समझा नहीं जा सकता। तप विधियों के रहस्य
तप का प्रत्याख्यान गुरु मुख से ही क्यों?
किसी भी प्रकार के तप का प्रत्याख्यान, व्रत उच्चारण आदि गुरुमुख से किया जाता है, गुरुजन या साधु-साध्वी का सान्निध्य न हो तो पूज्यजनों से अन्यथा परमात्मा के समक्ष स्वयं द्वारा किया जाता है। प्रश्न उठ सकता है कि गुरु मुख से प्रत्याख्यान क्यों करना चाहिए और उसके क्या फायदें हैं?
सर्वप्रथम तो प्रत्याख्यान लेने से व्यक्ति के मन में दृढ़ता आ जाती है, फिर परिस्थितियाँ उसे कमजोर नहीं बना सकती। इससे अनावश्यक पाप एवं परिग्रह का त्याग भी हो जाता है। गुरु मुख से प्रत्याख्यान लेने पर गुरु कृपा प्राप्त होती है, उनके तप त्याग एवं संयमबल की ऊर्जा का भावों में संचरण होता है और हमारे भीतर एक नयी स्फूर्ति एवं शक्ति प्रकट होती है । गुरु प्रत्याख्यानग्राही की शक्ति एवं सामर्थ्य देखकर उसे तद्योग्य तपस्या आदि के लिए प्रेरणा देकर मनोबल में वृद्धि करते हैं । जैन परम्परा में किसी भी तप या व्रत प्रत्याख्यान को परमात्मा, गुरु एवं स्वयं ऐसे तीन साक्षियों से तीन बार ग्रहण करने का भी नियम है। इससे व्रत खण्डन की सम्भावनाएँ समाप्त हो जाती है। तप काल में बाह्य कार्यों से निवृत्ति आवश्यक क्यों?
तप का मुख्य लक्ष्य मात्र शरीर को कष्ट देना या तपाना नहीं है अपितु स्व रमणता और आत्मतत्त्व की जागृति है । यदि तप के समय में तप आराधक बाह्य क्रियाओं में ही जुटा रहेगा तो वह आत्म चिन्तन में प्रवृत्त कैसे होगा ? दूसरा कारण यह है कि तप के दौरान अधिक से अधिक जीवों को अभयदान देना चाहिए जिसके लिए विवेक एवं निवृत्ति आवश्यक है। तीसरा हेतु यह है कि बाह्य क्रियाओं में प्रवृत्त रहने से शुभ भावों की उत्पत्ति नहीं होती और काम-काज से थकने के कारण तनाव, क्रोध आदि में भी वृद्धि होती है, जिससे स्वयं को और दूसरों को तप के प्रति अभाव उत्पन्न हो सकता है, परन्तु यह बात परिस्थिति सापेक्ष है। यदि किसी के यहाँ कोई काम करने वाला ही न हों अथवा इस कारण बहू, नौकर आदि पर अत्यधिक कार्य भार आ जाने से पारिवारिक