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________________ 108...तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक प्रभाव अपने आप बढ़ जाता है। सिद्धि मिलती है तो प्रसिद्धि अपने आप हो जाती है। इसलिए तप की जो विधि है वह लब्धि प्राप्त करने के लिए नहीं है, किन्तु तप का एक मार्ग है जिस मार्ग पर चलने से कई सिद्धियाँ अपने आप हासिल हो जाती हैं। जैसे- अमुक नगर को जाना है, यदि इस रास्ते से गये तो बीच में अमुक-अमुक स्थान आयेंगे और अमुक रास्ते से गये तो अमुक-अमुक स्थल। बीच के स्थल पर पहुँचने के लिए कोई यात्रा नहीं करता, वह तो अपने आप आयेगा ही, यात्रा का लक्ष्य तो मंजिल है। वैसे ही तप का उद्देश्य तो कर्म निर्जरा है, किन्तु अमुक विधि से तप का आचरण करने पर कर्म निर्जरा तो होती ही है। जिस प्रकार के कर्मों की निर्जरा होगी उसके फलस्वरूप आत्मा में स्वत: ही अमुक प्रकार की शक्ति जग जायेगी जैसे- बेले-बेले तप करते रहने से अमुक प्रकार की शक्ति जागृत होगी, तेले-तेले तप करने से उससे कुछ विशिष्ट आत्मशक्ति जागृत होगी। सारांश है कि साधक को फल की कामना से रहित होकर ही तप करना चाहिए तथा तप के द्वारा जो आभ्यन्तर शक्तियाँ प्रगट होती हैं उसका प्रभाव बाह्य जगत पर पड़ता ही है। यही तप के द्विविध फल हैं। तप साधना का उद्देश्य जैनाचार्यों ने तप की अद्भुत और अपार महिमा गायी है। सम्यक् तप के प्रभाव से अचिन्त्य लब्धियाँ, अनुपम ऋद्धियाँ और अपूर्व सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। अज्ञानी जीव भौतिक ऋद्धि-समृद्धि, सुख-सौभाग्य, यश-कीर्ति, नाम प्रसिद्धि आदि के उद्देश्य से ही तप करता है; किन्तु शास्त्रकार कहते हैं कि बाह्य सम्पदा अथवा देवता आदि को प्रसन्न करने के लिए तप योग करना तो आम के महावृक्ष से लकड़ियाँ चाहने जैसा है। वस्तुत: तप का उद्देश्य यह नहीं है। तप तो किसी महान् लाभ के लिए किया जाना चाहिए, ऋद्धि-सिद्धि तो स्वत: प्राप्त हो जाती है जैसे- धान्य की खेती करने पर धान के साथ भूसा-पलाल स्वत: मिल जाता है वैसे ही तप द्वारा निर्जरा होने के साथ-साथ सांसारिक सुख भूसापलाल की भाँति स्वयमेव प्राप्त हो जाते हैं। कोई भी सुज्ञ किसान भूसे के लिए खेती नहीं करता है वैसे ही भौतिक लाभ के लिए तप नहीं करना चाहिए। तप आत्मशुद्धि के महान् उद्देश्य से प्रेरित होकर ही किया जाना चाहिए।
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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