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________________ तप के भेद-प्रभेद एवं प्रकारों का वैशिष्ट्य...99 109. (क) औपपातिकसूत्र, 30 (ख) दशवैकालिक अगस्त्यचूर्णि, पृ. 15 (ग) भगवतीसूत्र, 25/7/224 110. (क) औपपातिकसूत्र, 30 (ख) दशवैकालिक अगस्त्यचूर्णि, पृ. 15 (ग) भगवतीसूत्र, 25/7/226-227 111. (क) औपपातिकसूत्र, 30 (ख) भगवतीसूत्र, 25/7/228-230 . (क) औपपातिकसूत्र, 30 (ख) दशवैकालिक अगस्त्यचूर्णि, पृ. 15 (ग) भगवतीसूत्र, 25/7/231-233 113. (क) औपपातिकसूत्र, 30 (ख) दशवैकालिक अगस्त्यचूर्णि, पृ. 15 (ग) भगवतीसूत्र, 25/7/234 114. विणए दुविहे-गहणविणए, आसेवणाविणए। दशवैकालिक जिनदासचूर्णि, पृ. 301 115. लोगोवयारविणयो, अत्थणिमित्तं च कामहेउं च। भयविणय मोक्खविणयो, विणयो खलु पंचहा होइ । दशवैकालिकनियुक्ति, गा. 211 116. विणओ सासणे मूलं, विणीओ संजओ भवे। विणयाउ विप्पमुक्कस्स, कओ धम्मो कओ तवो ॥ आवश्यकनियुक्ति, 1216 117. एवं धम्मस्स विणओ, मूलं परसो सो मोक्खो। जेण कित्तिं सुयं सिग्घं, निस्सेसं चाभिगच्छइ । दशवैकालिकसूत्र, 9/2/2 118. उत्तराध्ययनसूत्र, 1/45 119. दशवैकालिकसूत्र, 9/2/21 120. स्थानांगसूत्र, 3/4/477 121. जैन धर्म में तप स्वरूप और विश्लेषण, पृ. 439
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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