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तप के भेद-प्रभेद एवं प्रकारों का वैशिष्ट्य...97 74. (क) औपपातिकसूत्र, 30
(ख) दशवैकालिक जिनदासचूर्णि, पृ. 24 (क) औपपातिकसूत्र, 30 (ख) दशवैकालिक अगस्त्यचूर्णि, पृ. 14 (क) औपपातिकसूत्र, 30
(ख) दशवैकालिक अगस्त्यचूर्णि, पृ. 14 77. (क) औपपातिकसूत्र, 30
(ख) उत्तराध्ययनसूत्र, 30/28 78. मूलाराधना (भगवती आराधना), 3/228, 229, 231-232 79. जैन आचार : सिद्धान्त और स्वरूप, पृ. 567 80. उत्तराध्ययनसूत्र, 29/32 81. “अपराधौ वा प्रायः, चित्तं-शुद्धिः। प्रायस्य चित्तं-प्रायश्चित्तं- अपराधविशुद्धिः रित्यर्थः।"
तत्त्वार्थराजवार्त्तिक, 9/22/1 82. पावं छिंदति जम्हा, पायच्छित्तं तु भण्णइ तेणं। पाएण वावि चित्तं, विसोहए तेण पच्छित्तं ।
आवश्यकनियुक्ति 1522 83. “पायच्छित्त करणं- प्राय इति बाहुल्यस्याख्या, चित्त इति जीवितस्याख्या प्रायश्चित्तं सोधयतीति प्रायश्चित्त।"
आवश्यकचूर्णि, भा. 2, पृ. 251 84. “प्रशस्तं वा चित्तस्य विशुद्धिकारणमिति वा प्रायश्चित्त।" वही, पृ. 251 85. “चिती संज्ञाने- प्रायश: वितयमाचरितमर्थमनुस्सरतीति वा प्रायश्चित्तं।"
वही, पृ. 251 86. वही, पृ. 251 87. वही, पृ. 251 88. जैन धर्म में तप स्वरूप और विश्लेषण, पृ. 392 89. (क) दसविधे पायच्छित्ते तं जहा-आलोयणारिहे... अणवट्टप्पारिहे, पारंचियारिहे।
स्थानांगसूत्र, 10/73 (ख) भगवतीसूत्र, 25/7/218 (ग) आलोयणारिहाईयं पायच्छित्तं तु दसविहं उत्तराध्ययनसूत्र, 30/31 (घ) पायच्छित्तं दसविहं, तं जहा...।
दशवैकालिक अगस्त्यचूर्णि, पृ. 14 (च) औपपातिकसूत्र, 30