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96...तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक 58. .....पणीयं रसभोयणं।
नरसन्तगवेसिस्स विसं तालउडं जहा ॥ दशवैकालिकसूत्र, 8/59 59. रस परिच्चाए अणेगविहे पण्णत्ते, तं जहा....
औपपातिकसूत्र, 30 60. जैन धर्म में तप स्वरूप और विश्लेषण, पृ. 285-86 61. दृष्टा चेष्टार्थसंसिद्धौ, कायपीड़ा ह्यदुःखदा, रत्नादिवणिगादीनां, तद् वदत्रापि भाव्यताम् ।
वही, पृ. 287 62. सत्तविहे काय किलेसे पण्णत्ते तं जहा- ठाणाइस उक्कुडुयासणिए, पडिमट्ठाइवीरासणिए णेसणिज्जे दंडजाइए लगंडसाई॥
स्थानांगसूत्र, 7/49 63. कायकिलेसे अणेगविहे पण्णत्ते तं जहा- 1. ठाणट्ठिइए, 2. उक्कुडुयासणिए, 3. पडिमट्ठाई...11. विभूसापिप्पमुक्के, से तं कायकिलेसे।
औपपातिकसूत्र, 30 64. उत्तराध्ययनसूत्र, अध्ययन दूसरा 65. वही, 30/27 66. दशवैकालिक जिनदासचूर्णि, पृ. 24 67. उत्तराध्ययन शान्त्याचार्य टीका, पत्र 607 68. भगवतीसूत्र, 25/7/211 69. औपपातिकसूत्र, 30 70. उत्तराध्ययनसूत्र, 30/28 71. (क) कुम्मोव्व अल्लीण पल्लीण गुत्ते, उत्तराध्ययनसूत्र, 30/28
(ख) जहा से कुम्मए गुत्तिदिए, ज्ञाताधर्मकथा, संपा. मधुकरमुनि, 4/13 72. गीता, 2/58 73. (क) औपपातिकसूत्र, 30 (ख) संलीणता चउब्विहा तं जहा- इंदिय संलीणया । कसायसंलीणया, जोग संलीणया विवित्तचरिया ।
दशवैकालिक अगस्त्यचूर्णि, पृ. 14 (ग) उत्तराध्ययन शान्त्याचार्य टीका, पृ. 608