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92...तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक हुए जैनाचार्यों ने तप सेवन के विविध उपाय बताए हैं। चर्चित अध्याय में तप के विविध बाह्य-आभ्यांतर भेदों की चर्चा इसी अपेक्षा से की गई है कि हर आम
और खास व्यक्ति तप रूपी निर्जरा मार्ग पर आरूढ़ हो सके। सन्दर्भ-सूची 1. “बाह्यं बाह्यद्रव्यापेक्षत्वात्........ बाह्यं तदितरच्वाभ्यन्तरम्।"
उत्तराध्ययनसूत्र शान्त्याचार्य टीका, पत्र 600 2. (क) जैन धर्म में तप स्वरूप और विश्लेषण, पृ. 132-133
(ख) जैन आचार : सिद्धान्त और स्वरूप, पृ. 537 3. जैन धर्म में तप स्वरूप और विश्लेषण, पृ. 131-133 4. सो तवो दुविहो वुत्तो बाहिरब्भन्तरो तहा।
उत्तराध्ययनसूत्र, संपा. मधुकरमुनि 30/7 5. अणसणमूणोयरिया, भिक्खायरिया य रस परिच्चाओ। कायकिलेसो संलीणयाय, बज्झो तवो होई॥
(क) उत्तराध्ययनसूत्र, 30/8 छविहे बाहिरए तवे पण्णत्ते, तं जहा अणसणं...कायकिलेसो पडिसंलीणता।
(ख) स्थानांगसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 6/1/65 6. पायच्छित्तं विणओ, वेयावच्चं तहेव सज्झाओ। झाणं च बिउस्सग्गो, एसो अन्भिंतरो तवो॥
(क) उत्तराध्ययनसूत्र, 30/30 छविहे अब्भंतरिए तवे पण्णत्ते, तं जहा-पायच्छित्तं....विउस्सग्गो।
(ख) स्थानांगसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 6/1/66 7. अणसणे दुविहे पण्णत्ते तं जहा- इत्तरिए य आवकहिए।
इत्तरिए अणेगविहे पण्णत्ते... तं जहा-चउत्थ भत्ते, छट्ठ भत्ते.... जाव छम्मासिए भत्ते। (क) भगवतीसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, 25/7/198-199
(ख) उत्तराध्ययनसूत्र, 30/9 8. जो सो इत्तरिओ तवो, सो समासेण छव्विहो । सेढितवो पयरतवो, घणो य तह होइ वग्गोय ॥
तत्तो य वग्ग वग्गो, पंचम छट्ठओ पइराण तवो। मण इच्छियचित्तत्थो, नायव्वो होइ इत्तरिओ॥
उत्तराध्ययनसूत्र, 30/10-11