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________________ 90...तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक जिस तपस्वी ने अपने कषायों को क्षीण नहीं किया, कषाय आदि पर काबू नहीं पाया वह बाल तपस्वी है। वह चाहे जितना तप करे, उसका सब श्रम केवल कष्ट रूप है जैसे हाथी स्नान करके फिर सूंड से मिट्टी उछाल कर शरीर को मैला कर लेता है, वैसे ही बाल तपस्वी का सब तप व्यर्थ हो जाता है।187 भगवान पार्श्वनाथ और भगवान महावीर के समय में बाल तप का बोलबाला बहुत था। उन्होंने अज्ञान तप के प्रवाह को समाप्त करने का भरसक प्रयत्न किया। यद्यपि भगवान महावीर स्वयं कठोर तपोयोगी थे; किन्तु वे कमठ तापस जैसे देहदण्ड या यज्ञतप को बिल्कुल निरर्थक मानते थे। अज्ञान तप की कठोर आलोचना करते हुए भगवान् ने उत्तराध्ययनसूत्र में कहा है कि मासे मासे उ जो बाला, कुसग्गेण तु भुंजए। न सो सुयक्खायधम्मस्स, कलं अग्घेइ सोलसिं ।। जो अज्ञानी साधक एक-एक मास का कठोर उपवास करता है और पारणे में सिर्फ घास की नोक पर टिके उतना सा भोजन लेता है- इतना कठोर तप करने पर भी वह श्रेष्ठ धर्म की सोलहवीं कला की समानता भी नहीं कर सकता, क्योंकि वह देह को तो दण्ड दे रहा है; किन्तु उसके घट में अज्ञान भरा है।188 जैन धर्म में कठोर तप का महत्त्व नहीं माना गया हो, ऐसी बात नहीं है। यहाँ तप का मूल्य तो बहुत अधिक है; किन्तु अज्ञान तप का नहीं, ज्ञान पूर्वक तप का महत्त्व है। भगवान् आदिनाथ एक वर्ष निरन्तर निराहार रहे। भगवान् महावीर ने साढ़े बारह वर्ष की साधना काल में इतने उग्र तप किये, जिसे सुनते ही आत्मप्रदेश कम्पित हो जाते हैं। निरन्तर छह-छह की तपस्या के पारणे आयंबिल करने वाले धन्ना अणगार जैसे- अनेक उग्र तपस्वी उनके संघ में थे। इसीलिए यहाँ 'देह दुक्खं महाफलं' - देह को कष्ट देना महान फलप्रद माना है; किन्तु सिर्फ देह को तपाना नहीं, देह के साथ मन को तपाना भी आवश्यक है। इसीलिए यहाँ शरीर को कृश करने की जगह आत्मा (कर्म दलों) को, कषायों को कृश करने की बात कही गयी है - 'कसेहिं अप्पाणं जरेहिं अप्पाणं' आत्मा को, कषायों को कुश करो, उन्हें जीर्ण करो।189 यदि कषाय जीर्ण न हई तो तन को जीर्ण करने से क्या लाभ? अत: तपश्चर्या ज्ञान और विवेक पूर्वक करनी चाहिए।
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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