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________________ तप के भेद-प्रभेद एवं प्रकारों का वैशिष्ट्य...83 निःसंगता (आसक्ति रहितता), निर्भयता एवं जीने की इच्छा का त्याग करना व्युत्सर्ग है।178 इसका हार्द है कि शरीर, कषाय एवं परिग्रह आदि से स्वयं को सर्वथा पृथक् करते हुए आत्म स्वभाव में सुस्थिर हो जाना व्युत्सर्ग है। उत्तराध्ययनसूत्र में कायोत्सर्ग को ही व्युत्सर्ग तप कहा है। जिसे कायोत्सर्ग सिद्ध हो जाता है वह व्युत्सर्ग की आराधना सहजत: कर सकता है। वहाँ व्युत्सर्ग की परिभाषा इस प्रकार दी गयी है सयणासणठाणे वा, जे उ भिक्खू न वावरे । कायस्स विउस्सग्गो, छट्टो सो परिकित्तिओ ।। जो भिक्षु सोने, बैठने या खड़े रहने आदि क्रियाओं के समय व्यापृत (आसक्त) नहीं होता, उसके काया की चेष्टा का जो परित्याग होता है, उसे व्युत्सर्ग कहा जाता हैं। यह आभ्यन्तर तप का छठा प्रकार है। इस तरह कायोत्सर्ग को व्युत्सर्ग कहा है।179 प्रकार- भगवती आदि सूक्तागमों में व्युत्सर्ग तप मुख्यत: दो प्रकार का कहा गया है- द्रव्य व्युत्सर्ग और भाव व्युत्सर्ग।180 ___ 1. द्रव्य व्युत्सर्ग - द्रव्यत: शरीर आदि का परित्याग चार प्रकार से होता है, उनके नाम ये हैं 181- (i) गण व्युत्सर्ग (ii) शरीर व्युत्सर्ग (iii) उपधि व्युत्सर्ग (iv) भक्तपान व्युत्सर्ग। (i) गण व्युत्सर्ग - एक या अनेक गुरुओं के शिष्यों का समूह गण कहलाता है। गण में अनेक प्रकार के साधु रहते हैं जो अपनी-अपनी रुचि एवं सामर्थ्य के अनुसार श्रुतादि साधना में लीन रहते हैं। साधना की उत्कर्षता के लिए गण का आलम्बन आवश्यक है, किन्तु जब साधक को यह अनुभव हो जाये कि अब गण (सहवर्ती मुनियों आदि) का प्रशस्त मोह भी रत्नत्रय की आराधना में बाधक बन रहा है, इस संघ का परित्याग किये बिना शुद्ध अवस्था की प्राप्ति असम्भव है, क्योंकि आध्यात्मिक जगत में सम्यक् आलम्बन भी एक सीमा तक सहयोगी बनते हैं। उसके बाद वे भी बाधक बन जाते हैं तथैव गण का संग मध्यम चरण तक उपयोगी होता है। मोक्ष-प्राप्ति के अन्तिम चरण में उसका त्याग अपरिहार्य है अत: एक निश्चित अवधि के पश्चात गण का विसर्जन कर एकाकी साधना में निमग्न रहना गण व्युत्सर्ग कहलाता है। स्थानांगसूत्र में गण व्युत्सर्ग के सात कारण बतलाये गये हैं।
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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