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________________ 78...तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक (iv) विषयसंरक्षणानुबंधी - जो धन, वैभव, पद, प्रतिष्ठा आदि साधन एवं भोग विलास की सामग्री प्राप्त हुई है उसके संरक्षण की चिन्ता करना, सबके प्रति शंकाशील होना रौद्रध्यान का अन्तिम प्रकार है। रौद्रध्यान के चारों प्रकार राग-द्वेष और मोह से आकुल व्यक्ति के होते हैं। रौद्रध्यानी के भी कुछ विशेष लक्षण होते हैं। ध्यानशतक में प्रमुख चार लक्षण बतलाये गये हैं वे इस प्रकार हैं1661. रौद्रध्यान के उक्त चार प्रकारों में से किसी एक में बहुलतया प्रवृत्ति करता है। 2. रौद्रध्यान के सभी प्रकारों में प्रवृत्त रहता है। 3. हिंसा आदि अधर्म कार्यों में धर्म बुद्धि रखकर उनमें बार-बार प्रवृत्त होता है। 4. मरणान्त तक हिंसा आदि क्रूर भावों से युक्त रहता है। 3. धर्मध्यान- आत्मशुद्धि के साधनों अर्थात पवित्र विचारों में मन को एकाग्र करना धर्मध्यान है। भगवतीसूत्र आदि आगमों में यह ध्यान चार प्रकार का बतलाया गया है, वह निम्नोक्त हैं-167 (i) आज्ञाविचय - यहाँ विचय का अर्थ निर्णय अथवा विचार है। तीर्थङ्कर परमात्मा की जो आज्ञा है, उनका सर्वजनहिताय जो उपदेश है उस सम्बन्ध में चिन्तन करना, उस पर दृढ़ आस्था रखते हुए तमार्ग का अनुसरण करना धर्मध्यान का पहला प्रकार है। (ii) अपायविचय - अपाय का अर्थ है दोष या दुर्गुण। यह आत्मा अनादिकाल से मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद, कषाय और योग इन पांच दोषों के कारण संसार में परिभ्रमण कर रही है। उन दोषों से यह चेतना किस प्रकार मुक्त हो सकती है? आत्मा की विशुद्धि कैसे हो सकती है? इत्यादि विषय पर चिन्तन करना, धर्मध्यान का दूसरा प्रकार है। ___(iii) विपाकविचय - विपाक का अर्थ है- बंधे हुए कर्मों की स्थिति का समय पूर्ण होकर उसका उदय में आना। आत्मा अनेक दुष्कृत्यों के कारण अशुभ कर्म का बंधन करती है। उन कर्मों को भोगते समय उनके कटु परिणामों पर चिन्तन करना और उनसे बचने का संकल्प करना, विपाकविचय धर्मध्यान है।
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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