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________________ तप के भेद-प्रभेद एवं प्रकारों का वैशिष्ट्य...77 (iii) आतंक सम्प्रयोग - शरीर में रोगादि कष्ट आने पर उसके प्रतिकार के लिए व्याकुल रहना तथा उससे सदैव मुक्त रहने हेतु चिन्तित रहना रोग निदान नाम का आर्तध्यान कहलाता है। ___ (iv) परिजुषित कामभोग सम्प्रयोग - जो सुख सामग्रियाँ प्राप्त हुई हैं उन्हें सुरक्षित रखने की चिन्ता करना, भविष्य में वे कभी छूट-बिछुड़ न जायें उस तरह के उपाय सोचना, आगामी जन्म में इन भौतिक सुखों को कैसे प्राप्त कर सकू इसका विचार करना आदि आर्तध्यान का चौथा प्रकार है। इस आर्तध्यान में भविष्य चिन्ता की प्रमुखता रहती है, अत: इसे निदान भी माना गया है। आर्तध्यानी की स्थिति का दिग्दर्शन कराने के लिए उसके चार लक्षण बतलाये गये हैं-162 1. जोर-जोर से चिल्लाना 2. अश्रुपूर्ण आँखों से दीनता दिखाना 3. विलाप करना 4. छाती, सिर आदि को पीटना। आर्तध्यान करने वाला इष्ट वियोग, अनिष्ट संयोग, रोग निदान आदि परिस्थितियों में रुदन, उच्च स्वर में भाषण आदि प्रवृत्तियाँ करता ही है। यह आर्तध्यान अविरत, देशविरत (श्रावक) और प्रमत्तसंयत (छठे गुणस्थानवर्ती मुनि) के होता है।163 2. रौद्रध्यान- जो दूसरों को रुलाता है, वह रुद्र है। उस आत्मा की प्राणिवध आदि के रूप में क्रूरतामय परिणति रौद्रध्यान कहलाता है।164 आर्त्तध्यान में दीनता, हीनता एवं शोक की प्रबलता रहती है परंतु रौद्रध्यान में क्रूरता एवं हिंसक भावों की प्रधानता होती है। आर्तध्यान प्राय: आत्मघाती ही होता है। रौद्रध्यान आत्मघात के साथ पराघात भी करता है। रौद्रध्यान की उत्पत्ति निम्न चार कारणों से होती है165_ ___ (i) हिंसानुबंधी - किसी को मारने, पीटने या हत्या आदि करने के सम्बन्ध में विचार करना, गुप्त योजनाएँ बनाने के लिए गहरा चिन्तन करना रौद्रध्यान का प्रथम प्रकार है। ___(ii) मृषानुबंधी - दूसरों को ठगने, धोखा देने, लोगों को गुमराह करने सम्बन्धी चिन्तन करना, रौद्रध्यान का दूसरा प्रकार है। (iii) स्तेयानुबंधी - तीव्र क्रोध और लोभ के वशीभूत होकर दूसरे की वस्तु अपहृत करने की इच्छा करना, लूट-खसोट के नये-नये उपाय सोचते रहना, स्तेयानुबंधी रौद्रध्यान है।
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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