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________________ 76...तप साधना विधि का प्रासंगिक अनुशीलन आगमों से अब तक वात, पित्त और कफ ये तीन धातुएँ हैं। इनमें से जो प्रचुर होता है, उसी का व्यपदेश किया जाता है। जैसे वायु कुपित होने पर 'वायु कुपित है' ऐसा कहा जाता है। उसका तात्पर्य यह नहीं कि पित्त और श्लेष्म ठीक है। इसी तरह मन की एकाग्रता ध्यान है, यह परिभाषा भी प्रधानता को संलक्ष्य में रखकर की गयी है। स्पष्टार्थ है कि मन सहित काया और वाणी को जब एकरूपता मिलती है तब वह पूर्ण ध्यान कहलाता है। यहाँ दूसरा प्रश्न यह उभरता है कि यदि मन का किसी विषय में स्थिर होना ही ध्यान है तो फिर व्यापारी, गृहिणी, कामी पुरुष, लुटेरा, अध्यापक आदि भी अपनी-अपनी प्रवृत्ति में मग्न रहते हैं, स्वयोग्य कार्य के समय उसमें दत्तचित्त रहते हैं तो उस स्थिति को भी ध्यान ही कहना होगा? ___ इसका समाधान यह है कि वह पापात्मक चिन्तन भी ध्यान की कोटि में ही आता है और इसीलिए आचार्यों ने ध्यान के दो भेद किये हैं- शुभध्यान और अशुभध्यान। जैसे गाय और थूहर दोनों का दूध सफेद होता है; किन्तु एक अमृत और दूसरा जहर का काम करता है। इसी तरह ध्यान-ध्यान में अन्तर है। एक शुभ होता है और एक अशुभ। शुभध्यान मोक्ष का और अशुभध्यान दुर्गति का जनक है। प्रकार - पूर्वोक्त स्वरूप के अनुसार ध्यान के अनेक भेद-प्रभेद किये जा सकते हैं। एक-एक ध्यान के असंख्य स्थान हैं। संसारी आत्मा पैण्डुलम् की तरह इन स्थानों में आरोह-अवरोह करता रहता है। फिर भी मुख्य रूप से ध्यान के दो भेद निरूपित हैं - 1. प्रशस्तध्यान और 2. अप्रशस्तध्यान। ये दो ध्यान भी शुभ और अशुभ की दृष्टि से दो-दो प्रकार के हैं। इनमें धर्मध्यान और शुक्लध्यान शुभध्यान हैं तथा आर्तध्यान और रौद्रध्यान अशुभ ध्यान हैं। ये चारों ध्यान भी चार-चार प्रकार के कहे गये हैं, जो संक्षेप में निम्न प्रकार हैं. 1. आर्तध्यान- आर्तध्यान चार प्रकार से होता है161 (i) अनिष्ट संयोग - अनचाही वस्तु का संयोग होने पर उससे छुटकारा पाने के लिए सतत चिन्ता करना कि यह वस्तु या व्यक्ति कब दूर होगा, जैसेभयंकर गर्मी में तड़फना आदि आर्तध्यान कहलाता है। (ii) इष्ट वियोग - मनचाही वस्तु या व्यक्ति का वियोग होने पर उसे पाने के लिए चिन्ता करना, दुःखी होना आर्तध्यान का दूसरा प्रकार है।
SR No.006246
Book TitleTap Sadhna Vidhi Ka Prasangik Anushilan Agamo se Ab Tak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages316
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size25 MB
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