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40... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण में संयम अंगीकार करती हैं किन्तु शरीर आसक्ति के कारण संयम विराधना कर देवलोक में देवियों के रूप में उत्पन्न होती हैं। ये देवलोक का आयुष्य पूर्ण कर महाविदेह में जन्म लेंगी और चारित्र अंगीकार कर मोक्षपद प्राप्त करेंगी।
__12. वृष्णिदशासूत्र- यह बारहवाँ उपांग सूत्र है। इसमें वृष्णिवंश के बारह राजकुमारों का जीवन चारित्र वर्णित होने से इसका नाम वृष्णिदशा है। ये सभी संयम साधना का सम्यक पालन कर सर्वार्थसिद्धि विमान में उत्पन्न होते हैं तथा वहाँ से महाविदेह में जन्म लेकर मोक्ष जायेंगे, इसका वर्णन है। राजकुमारों के नाम ये हैं- 1. निषध 2. मायनी 3. वह 4. वध 5. प्रगति 6. ज्योति 7. दशरथ 8. दृढ़रथ 9. महाधनु 10. सप्तधनु 11. दशधनु और 12. शतधन।
इसमें कथा तत्त्व की अपेक्षा पौराणिक आख्यानों का प्राधान्य है। साथ ही द्वारिका नगरी एवं भगवान अरिष्टनेमि का वैशिष्ट्य प्रतिपादित किया गया है। वर्तमान संस्करण के अनुसार निरयावलिका आदि पाँच उपांग 1109 श्लोक परिमाण है। चार मूलसूत्र
मूलसूत्र की अवधारणा कब अस्तित्व में आई, निश्चित रूप से कह पाना असम्भव है, यद्यपि इस नाम का उल्लेख सर्वप्रथम प्रभावक चरित्र (वि.सं. 1334) में पढ़ने को मिलता है। आचार्य देवेन्द्रमुनि के अनुसार जिन सूत्रों में मुख्य रूप से श्रमणाचार के मूलगुणों-महाव्रतों, समिति-गुप्ति आदि का वर्णन है, जो श्रमण की जीवनचर्या में मूल रूप से सहायक बनते हैं और जिन ग्रन्थों का अध्ययन श्रमण के लिए सर्वथा आवश्यक है, मूलसूत्र कहलाते हैं।119 श्वेताम्बर मर्तिपूजक परम्परा में उत्तराध्ययन, दशवैकालिक, आवश्यकसूत्र पिण्डनियुक्ति या ओघनियुक्ति- ये चार आगम मूलसूत्र के रूप में माने गये हैं। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है___1. उत्तराध्ययनसूत्र- यह अर्धमागधी साहित्य का सर्वाधिक प्रसिद्ध ग्रन्थ है। मूलसूत्रों में उत्तराध्ययनसूत्र का प्रथम स्थान है। कालिकश्रुत में भी इसका स्थान सर्वप्रथम है।120 इसमें उत्तर और अध्ययन ऐसे दो शब्द हैं। नियुक्तिकार के अनुसार ये अध्ययन आचारांग के अध्ययन के पश्चात अर्थात उत्तरकाल में पढ़े जाते थे, इसलिए इन्हें उत्तर अध्ययन कहा गया है।121 आचार्य शय्यंभव के पश्चात भी ये अध्ययन दशवैकालिक के अध्ययन के पश्चात अर्थात उत्तरकाल में पढ़े जाने लगे, अत: इनका नाम उत्तर अध्ययन ही रहा।