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38... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण नाम ‘सूर्य-चन्द्र प्रज्ञप्ति' होगा। कालान्तर में बारह उपांगों की संख्या पूर्ति करने हेतु इसे विभाजित कर दिया गया। यहाँ आगमविज्ञ रत्नयशविजयजी महाराज साहब के अनुसार विद्वानों का पूर्वपक्ष समुचित नहीं है क्योंकि दोनों ही ग्रन्थ स्वतन्त्र होने से ही इनके पृथक-पृथक उल्लेख हुए हैं। उपांगसूत्रों में भी दोनों की अलग-अलग गिनती करने पर ही 12 उपांग बने हैं। दोनों में कतिपय सूत्र रचना समानता का कारण दोनों की एक-दूसरे से रही अपेक्षा मालूम होती है। जैसे सायन व निरयन ज्योतिष प्रणाली में एक में सूर्य को प्रधान मानकर गिनती होती है जबकि दूसरे में चन्द्र को प्रधान मानकर गिनती होती है। फल तो दोनों का एक ही आता है वैसा ही इन सूत्रों में है। ___ पाक्षिक सूत्र में पाँच महाव्रत एवं छठा रात्रिभोजन विरमण व्रत के आलापक समान ही लगते हैं। जो विभिन्नता है वह नाम एवं विषय की ही है वैसा ही इसमें हो सकता है। अत: विरोध नहीं है। पाक्षिक सूत्रानुसार चंद्रप्रज्ञप्ति और सूर्य प्रज्ञप्ति दोनों कालिकसूत्र हैं जबकि नंदीसूत्रानुसार एक कालिक सूत्र तो दूसरा उत्कालिक सूत्र है। ___ नव तेरापंथ के मुनि नगराजजी ने इस सन्दर्भ में एक सुन्दर समाधान प्रस्तुत किया है। उसका आशय यह है कि शब्द अनेकार्थक होते हैं अत: यह भी संभव है कि इनकी शब्दावली तुल्य होने पर भी भाव अभीष्ट ग्रन्थानुसार हो।117 आचार्य देवेन्द्रमुनि जी ने चन्द्रप्रज्ञप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति में समानता अनुज्ञापित करते हुए भी चन्द्रप्रज्ञप्ति की नौ विशेषताएँ बतलायी है।118 वर्तमान उपलब्ध संस्करण में इस उपांग का श्लोक परिमाण 2058 है। - 8.निरयावालिकासूत्र- इस उपांग के अन्तर्गत पाँच उपांगसूत्रों का समावेश इस प्रकार किया गया है- 1. कल्पिका 2. कल्पवतंसिका 3. पुष्पिका 4. पुष्पचूलिका और 5. वह्मिदशा। विद्वानों के अनुसार पूर्वकाल में उक्त पाँचों उपांग निरयावलिका के नाम से प्रख्यात थे, किन्तु कालान्तर में बारह उपांगों का बारह अंगों से सम्बन्ध स्थापित करने हेतु इनकी गणना पृथक रूप में की गई। निरयावलिका का शाब्दिक अर्थ है- निरय अर्थात नरक, आवलिका अर्थात पंक्तिबद्ध इसमें नरक में जाने वाले जीवों का क्रमश: वर्णन किया गया है इसलिए इसका निरयावलिका नाम है। इसका अपर नाम कल्पिका है। इसके दस अध्ययनों में क्रमश: श्रेणिक राजा के दस पुत्र सुकाल, महाकाल, कण्ह,