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________________ जैन आगम : एक परिचय ... 37 का वर्णन है । सोलहवें एवं बत्तीसवें पद में मन, वचन, काया योग एवं आश्रव का और तेईसवें पद में बन्ध का विवेचन है। छत्तीसवें पद में संवर, निर्जरा एवं मोक्ष का प्रतिपादन है। शेष पदों में भाषा, लेश्या, समाधि एवं लोकस्वरूप का निरूपण है। प्रज्ञापना के रचयिता श्यामाचार्य हैं। इसे दृष्टिवाद से उद्धृत माना जाता है।113 आचार्य मलयगिरि 114 ने इसे समवायांग का और आचार्य तुलसी ने इसे भगवती का उपांगसूत्र कहा है। 115 वर्तमान संस्करण में इस आगम का श्लोक परिमाण 7989, 8100 या 7787 है। 5. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्तिसूत्र - इस आगम को कहीं पाँचवें तो कहीं छठें उपांग सूत्र रूप में स्वीकारा गया है। प्रज्ञप्ति का अर्थ है निरूपण । इसमें जम्बूद्वीप के स्वरूप का निरूपण है इसलिए इसका नाम जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति है। इस उपांग सूत्र में एक अध्ययन है, जो सात भागों में विभक्त है । वर्गीकृत भाग को वक्षस्कार कहा गया है। उनमें क्रमश: निम्न विषय वर्णित हैं- 1. जम्बूद्वीप 2. कालचक्र और ऋषभ चरित्र 3. भरत चरित्र 4. जम्बूद्वीप का विस्तृत वर्णन 5 तीर्थंकरों का जन्माभिषेक 6. जम्बूद्वीप की भौगोलिक स्थिति एवं 7. ज्योतिष चक्र। इसमें कालचक्र के सन्दर्भ में अवसर्पिणी के अत्यन्त कष्टमय छठवें आरे का भी वर्णन है जो प्रलयकाल के समरूप माना जा सकता है। वर्तमान संस्करण के अनुसार इसका श्लोक परिमाण 4458 एवं मतान्तर से 4146 है। 6. सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र - सूर्यप्रज्ञप्ति को कहीं पाँचवां तो कहीं छठा उपांगसूत्र माना गया है। इसमें सूर्य आदि ज्योतिष चक्र का निरूपण है अतः इसका नाम सूर्यप्रज्ञप्ति है। इस ग्रन्थ में बीस प्राभृत और 108 सूत्र हैं। 116 इनमें सूर्य, चन्द्र और नक्षत्रों की गतियों का सुविस्तृत वर्णन है। मुख्यतया इस सूत्र में ज्योतिष सम्बन्धी मान्यताओं का संकलन किया गया है। इस अपेक्षा से इसे ज्योतिष, भूगोल, गणित एवं खगोल विज्ञान का अद्वितीय कोश कह सकते हैं। 7. चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र - चन्द्रप्रज्ञप्ति सातवाँ उपांग सूत्र है। इसके नाम से तो यह प्रतीत होता है कि इसमें चन्द्रमा सम्बन्धी वर्णन होना चाहिए, किन्तु मंगलाचरण रूप एवं बीस प्राभृतों का संक्षेप सार बताने वाली अठारह गाथाओं के अतिरिक्त इस ग्रन्थ की सामग्री सूर्यप्रज्ञप्ति से अक्षरशः मिलती है। इस आधार पर कुछ विद्वानों की मान्यता है कि मूलतः ये दोनों एक ही ग्रन्थ थे और इसका
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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