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36... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
का पूर्वभव बतलाते हुए कहते हैं कि यह पूर्वभव में राजा पसेनीय या प्रदेशी था । द्वितीय विभाग में राजा प्रदेशी अपने अनात्मवादी, अपुनर्जन्मवादी तथा भौतिकवादी दृष्टिकोण को लेकर केशीश्रमण के समक्ष अनेक प्रश्न प्रस्तुत करता है। श्रमण केशीकुमार उनका युक्ति संगत समाधान देते हैं। अन्ततः राजा प्रदेशी सम्यक्त्व ग्रहण कर लेते हैं और पत्नी द्वारा भोजन में विष खिला देने पर वे समभाव पूर्वक आमरण अनशन स्वीकार कर लेते हैं।
यह आगम आर्य देश की प्राचीन सांस्कृतिक सामग्री की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इसमें बत्तीस प्रकार के नाटकों, सप्तस्वरों, लेखनकला एवं साम, दामादि नीतियों का प्रतिपादन किया गया है। इस आगम के अध्ययन से भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा सम्बन्धी अनेक जानकारियाँ प्राप्त होती है। वर्तमान संस्करण में यह आगम 2509, 2079 या 2120 श्लोक संख्या वाला माना गया है।
3. जीवाजीवाभिगमसूत्र - यह तीसरा उपांगसूत्र है। इसमें भगवान महावीर और गौतम गणधर के मध्य हुए प्रश्नोत्तरों के माध्यम से जीव-अजीव के भेद-प्रभेदों की चर्चा की गई है अतः इसका नाम जीवाजीवाभिगम है। जीव + अजीव + अभिगम (ज्ञान) अर्थात जीव एवं अजीव का ज्ञान कराने वाला होने से इसे जीवाजीवाभिगम कहा जाता है।
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इस आगम में एक अध्ययन, नौ प्रतिपत्ति 272 गद्य सूत्र और 81 पद्य गाथाएँ हैं। यद्यपि इसका प्रतिपाद्य विषय जीव एवं अजीव का स्वरूप वर्णन है तथापि इसमें अवान्तर विषय भी उपलब्ध होते हैं, जैसे- द्वीप, सागर, सोलह प्रकार के रत्नों, विविध आभूषणों तथा ग्राम-नगर आदि की भी चर्चा है। इसमें त्योहारों और उत्सवों का भी वर्णन है । आर्य देश के प्राचीन लोक जीवन की दृष्टि से भी यह बहुत महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। वर्तमान में इसका श्लोकपरिमाण 4700 या 5200 माना गया है।
4. प्रज्ञापनासूत्र - प्रज्ञापना चतुर्थ उपांगसूत्र है । इसका शाब्दिक अर्थ हैप्रकर्ष रूप से ज्ञापन (प्रतिपादन) अथवा प्रकर्ष रूप से ज्ञान का आख्यान या विवेचन है। इसमें जीव- अजीव का प्रतिपादन होने से इसका नाम प्रज्ञापना है। यह ध्यातव्य है कि जैसे अंगों में भगवतीसूत्र सबसे बड़ा है वैसे ही उपांगों में प्रज्ञापनासूत्र सबसे बड़ा है। इसमें छत्तीस पद (अध्याय) है। यह भी प्रश्नोत्तर शैली में है। इसके पहले, तीसरे, पाँचवें, दसवें एवं तेरहवें पद में जीव - अजीव