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________________ जैन आगम : एक परिचय ...35 सामान्यतया प्रत्येक अंग का एक उपांगसूत्र है। इस प्रकार उपांग बारह है इनका सामान्य परिचय निम्नानुसार है __ 1. औपपातिकसूत्र- यह प्रथम उपांग सूत्र है। उपपात का अर्थ प्रादुर्भाव या जन्मान्तर संक्रमण है। उपपात शब्द ऊर्ध्वगमन एवं सिद्धिगमन के अर्थ में भी प्रयुक्त है। अभिधानराजेन्द्र कोश के अनुसार इस अंग में नरक एवं स्वर्ग में उत्पन्न होने वाले तथा सिद्धि प्राप्त करने वाले जीवों का वर्णन है, इसलिए इसका नाम औपपातिक है।111 इसमें दो अध्ययन हैं। प्रथम का नाम समवसरण और द्वितीय का नाम उपपात है। इन अध्ययनों की विषय वस्तु को तीन अधिकारों में बाँटा गया है1. समवसरणाधिकार 2. औपपातिकाधिकार और 3. सिद्धाधिकार। प्रथम समवसरण अधिकार में नगर, उद्यान, वृक्ष, राज्य आदि का वर्णन किया गया है। इसमें भगवान महावीर के गुणों, उपदेशों एवं समवसरण की रचना का भी चित्रण है। द्वितीय औपपातिक अधिकार में विभिन्न परिणामों, विचारों, भावनाओं के आधार पर व्यक्ति का पुनर्जन्म किस रूप में होगा? इसका प्रतिपादन है। तृतीय सिद्ध अधिकार में सिद्धों के स्वरूप एवं उनके सुख आदि का वर्णन किया गया है। इसमें सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक, दार्शनिक एवं धार्मिक आदि अनेक विषयों का विशद विवेचन है। इस आगम का प्रारम्भिक भाग गद्यात्मक एवं अन्तिम भाग पद्यात्मक है तथा मध्य में गद्य-पद्य का सम्मिश्रण है। वर्तमान में यह आगम 1167 एवं मतान्तर से 1500 श्लोक परिणाम है। 2. राजप्रश्नीयसूत्र- उपांग सूत्रों में यह दूसरा उपांग है। विद्वज्जनों के अभिमतानुसार इस आगम के नाम का सीधा सम्बन्ध राजा प्रसेनजित से है। पं. बेचरदास जी ने इसी आधार पर इसका नाम 'रायपसेणइयं' माना है। 12 परन्तु वर्तमान में उपलब्ध कथानक में राजा का नाम प्रसेनजित के स्थान पर प्रदेशी बताया जाता है। संभवत: प्राकृत शब्द 'पसेणी' के आधार पर राजा को प्रदेशी मान लिया है। मूलतः ‘पसेनीय' होकर उसका संस्कृत रूप ‘प्रसेनजित' करना चाहिए। यह आगम दो भागों में विभक्त है। प्रथम विभाग सूर्याभदेव के पूर्वजन्म से सम्बन्धित है। एकदा भगवान महावीर के समवसरण में सूर्याभदेव उपस्थित होता है तब गौतम स्वामी उसके विषय में प्रश्न पूछते हैं- तब भगवान सूर्याभ
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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