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________________ जैन आगम : एक परिचय ...33 ___10. प्रश्नव्याकरणसूत्र- द्वादशांगी में प्रश्नव्याकरण सूत्र का दशवाँ स्थान है। इसका शाब्दिक अर्थ है- प्रश्नों का व्याकरण अर्थात निर्वचन, उत्तर या निराकरण। समवायांग एवं नन्दीसूत्र के निर्देशानुसार इसमें निमित्त शास्त्र सम्बन्धी प्रश्नोत्तर हैं। इस दृष्टि से ही इसका नाम प्रश्नव्याकरण होना चाहिए। किन्तु वर्तमान में प्रश्नव्याकरण सूत्र का जो संस्करण उपलब्ध है उसमें दस अध्ययन पाँच आश्रवद्वार और पाँच संवरद्वार में विभक्त हैं। हिंसा, असत्य, स्तेय, अब्रह्म एवं परिग्रह- ये आश्रवद्वार हैं और अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह- ये संवर द्वार हैं। इसमें बताया गया है कि हिंसा आदि आश्रव द्वारों के सेवन से जीव की दर्गति होती है तथा अहिंसा आदि संवर द्वारों का आसेवन करने से आत्मा सद्गति का उपार्जन करती है। ___ नन्दीसूत्र के अनुसार इस सूत्र में एक सौ आठ प्रश्न, एक सौ आठ अप्रश्न, एक सौ आठ प्रश्न-अप्रश्न, दिव्य विद्यातिशय तथा नाग और देवों के साथ हुए संवादों का आख्यान किया गया है। यहाँ उक्त वर्णन का स्पष्टार्थ यह है कि वर्तमान में उपलब्ध प्रश्न व्याकरणसूत्र में निमित्त शास्त्र सम्बन्धी प्रश्नोत्तर प्राप्त नहीं होते हैं। समवायांग एवं नन्दीसूत्र में किए गए निर्देश किसी मुख्यता को लेकर किए होंगे। उस समय पाँच आश्रव एवं पाँच संवर रूप 10 अध्ययन गौणता से होंगे, अत: निर्देश नहीं होगा। यदि निर्देश किया भी होगा तो. वहाँ की पंक्तियाँ लुप्त हो सकती है। जो कुछ भी हो आज के संस्करण में तो दस अध्ययन पाँच आश्रव-पाँच संवर रूप ही मिलते हैं। इसकी प्राकृत भाषा गद्यात्मक एवं विशेषणों से भरपूर है। विद्वानों की मान्यतानुसार प्रश्नव्याकरणसूत्र की विषयवस्तु में कालक्रम की अपेक्षा परिवर्तन होता रहा है। डॉ. सागरमल जैन के अनुसार इस आगम की प्राचीनतम विषयवस्तु ऋषिभाषित और उत्तराध्ययनसूत्र में उपलब्ध होती है।108 इसमें मूल रूप से एक श्रुतस्कन्ध, पैंतालीस अध्ययन, पैंतालीस उद्देशक, पैंतालीस समुद्देशक एवं संख्येय हजार पद हैं। वर्तमान उपलब्ध संस्करण में इसकी श्लोक संख्या बारह सौ पचास है। ___ 11. विपाकश्रुत- यह ग्यारहवाँ अंग आगम है। विपाक का अर्थ शुभ एवं अशुभ कर्मों का परिणाम (अनुभव) है। इसमें पुण्य एवं पाप कर्मों के विपाक (उदय) का वर्णन किया गया है अत: इसका नाम 'विपाकश्रुत' है।
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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