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32... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण है उसमें एक श्रुतस्कन्ध एवं आठ वर्ग हैं। इसका श्लोक परिमाण नौ सौ है।
प्रथम वर्ग में गौतम, समुद्र, सागर, गम्भीर, स्तिमित, अचल, काम्पिल्य, अक्षोभ, प्रसेनजित और विष्णु ये दस अध्ययन हैं। इसी तरह द्वितीय वर्ग में आठ, तृतीय वर्ग में तेरह, चतुर्थ वर्ग में दस, पंचम वर्ग में दस, षष्ठम वर्ग में सोलह, सप्तम वर्ग में तेरह और अष्टम वर्ग में दस अध्ययन हैं।
ज्ञातव्य है कि अन्तकृतदशासूत्र की विषयवस्तु का उल्लेख सर्वप्रथम स्थानांगसूत्र में प्राप्त होता है वहाँ अन्तकृतदशा के दस अध्ययन बताये गये हैं। वर्तमान उपलब्ध संस्करण में आठ वर्गों के अन्तर्गत जिनके नामों का उल्लेख किया गया है उनमें से स्थानांग में किंकम और सुदर्शन- ये दो नाम ही प्राप्त होते हैं, शेष सारे नाम भिन्न हैं।
समवायांग के अनुसार इसमें एक श्रुतस्कन्ध, दस अध्ययन और सात वर्ग हैं जबकि उपलब्ध अन्तकृतदशा में आठ वर्ग हैं। इस विषयक विस्तृत स्पष्टीकरण हेतु आदरणीय डॉ. सागरमलजी जैन अभिनन्दन ग्रन्थ (पृ. 70) अवलोकनीय है।
9. अनुत्तरोपपातिकदशासूत्र- यह नौवां अंग आगम है। इसमें भगवान महावीर के समय के ऐसे मुनिवरों का वर्णन हैं जो उत्कृष्ट चारित्र का पालन कर अनुत्तर विमानवासी देव बने, अत: इसका अनुत्तरोपपातिकदशा यह नाम सार्थक है। अनुत्तरवासी देव एक मनुष्य भव करके सीधे मोक्ष में जाते हैं।
इस आगम में एक श्रुतस्कन्ध, तीन वर्ग और तैंतीस अध्ययन हैं। इसके प्रथम वर्ग में धारिणी पुत्र जालि-मयालि आदि दस राजकुमारों, द्वितीय वर्ग में दीर्घसेन, महासेन आदि तेरह राजकुमारों एवं तृतीय वर्ग में धन्यकुमार आदि दस कुमारों के वीतरागपथ पर अग्रसर होने का वर्णन है। ये सभी राजकुमार संयमपथ अंगीकार कर अनुत्तरविमान नामक देवलोक में देव हुए। वहाँ से आयु पूर्णकर नरभव के द्वारा मुक्ति को प्राप्त करेंगे।
इस आगम के अध्ययन से तत्कालीन सामाजिक व सांस्कृतिक परिस्थितियों का भी समुचित ज्ञान उपलब्ध हो जाता है।
नन्दीसूत्र के अनुसार इस नवम अंग आगम में एक श्रुतस्कन्ध, तीन वर्ग, तीन उद्देशक, तीन समुद्देशक एवं संख्येय हजार पद हैं। वर्तमान संस्करण में इसकी श्लोक संख्या एक सौ बरानवे हैं।