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जैन आगम : एक परिचय ... 31
के आधार पर इसकी श्लोक संख्या 5250, 5500, 5627, 5750 एवं 6000 मानी गई हैं।
7. उपासकदशासूत्र- सातवाँ अंग आगम उपासकदशासूत्र है। उपासक अर्थात गृहस्थ साधक, दशा अर्थात अवस्था या दस की संख्या वाला। इसमें भगवान महावीर के दस उपासकों का आदर्श जीवन चरित्र संकलित है अतः इसका नाम उपासकदशा है। यदि यहाँ दशा शब्द का अर्थ अवस्था करें तो इसमें उपासकों की अविरत, विरत एवं साधक अवस्थाओं का वर्णन होने से भी इसका उपासकदशा नाम अन्वर्थक सिद्ध होता है।
इस आगम में क्रमशः आनन्द, कामदेव, चुलनीपिता, सुरादेव, चुलनीशतक, कुण्डकोलिक, शकडालपुत्र, महाशतक, नन्दिनीपिता और सालिही पिता- इन दस श्रावकों की ऋद्धि, समृद्धि, उनके द्वारा व्रत ग्रहण, उनकी समाधि-मरण की साधना तथा साधनाकाल में उपस्थित उपसर्गों का वर्णन है। जहाँ आचारांग समग्रता से श्रमणाचार का निरूपण करता है वहाँ उपासकदशा एक मात्र गृहस्थाचार का वर्णन करता है।
नन्दीसूत्र के अनुसार इस अंग में एक श्रुतस्कन्ध, दस अध्ययन, दस उद्देशक, दस समुद्देशक एवं संख्येय हजार पद हैं। वर्तमान संस्करण में इसकी श्लोक संख्या 912, 872 एवं 812 मानी गई है।
8. अन्तकृतदशासूत्र - द्वादशांगी का आठवाँ अंग सूत्र अन्तकृतदशा है। जो साधक जीवन के अन्तिम क्षणों में केवलज्ञान प्राप्ति के साथ ही जन्म-मरण की परम्परा का अन्त कर लेते हैं वे अन्तकृत कहलाते हैं। इसमें अन्तकृत साधकों की जीवन गाथा का वर्णन होने से इस आगम का नाम अन्तकृतदशा है। इस आगम में प्रमुखतया श्रीकृष्ण वासुदेव की पत्नियों, पुत्र, वधुओं, उनके लघुभ्राता गजसुकुमाल आदि एवं श्रेणिक राजा की रानियों तथा अन्य अनेक राजकुमारों की दीक्षा, तपस्या एवं अन्तिम आराधना पूर्वक मोक्षगमन का उल्लेख है। इसमें कनकावली, रत्नावली आदि उत्कृष्ट तपश्चर्याओं का भी उल्लेख किया गया है। इस श्रुतांग में अनेक कथानक पूर्ण रूप से वर्णित नहीं है, अपितु 'वण्णवो' एवं 'जाव' शब्द का संकेत कर अधिकांश वर्णन मात्र सांकेतिक रूप में सूचित किए गए हैं।
नन्दीसूत्र के अनुसार इसमें एक श्रुतस्कन्ध, आठ वर्ग, आठ उद्देशक, आठ समुद्देशक एवं संख्यात हजार पद हैं। वर्तमान में जो अन्तकृतदशा उपलब्ध