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30... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण इस आगम के प्रति विशेष श्रद्धा है अत: इसका दूसरा नाम ‘भगवती' है और वर्तमान में यही नाम अधिक प्रचलित है। ___ यह आगम जैन सिद्धान्त, इतिहास, भूगोल, समाज और संस्कृति की अपेक्षा महत्त्वपूर्ण है। इसमें इक्कीसवें शतक से लेकर तेईसवें शतक तक वनस्पतियों का वर्गीकरण विशिष्ट प्रकार से किया गया है। गणित की दृष्टि से पार्श्व संतानीय गांगेय अणगार के प्रश्नोत्तर भी पठनीय है। ऐतिहासिक दृष्टि से
आजीवक संघीय मंखली गोशालक, जमालि, शिवराजर्षि, स्कन्दक आदि के प्रकरण भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। तत्त्वचर्चा की दृष्टि से जयन्ती, मदुक श्रमणोपासक, रोह अणगार, सोमिल ब्राह्मण, तुंगिया नगरी के श्रावकों से सम्बन्धित प्रकरण भी मननीय है। यह आंगम गद्य प्रधान है किन्तु संग्रहणी सम्बन्धी गाथाएँ उद्धृत होने के कारण इसमें पद्य भाग भी प्राप्त होता है।
नन्दीसूत्र के कथनानुसार इस पंचम अंग आगम में एक श्रुतस्कन्ध, कुछ अधिक सौ अध्ययन, दस हजार उद्देशक, दस हजार समुद्देशक, छत्तीस हजार प्रश्नों का व्याकरण एवं दो लाख अठासी हजार पद हैं। वर्तमान संस्करण में इसकी श्लोक संख्या सोलह हजार तथा मतान्तर से पन्द्रह हजार आठ सौ स्वीकारी गई है। ___6. ज्ञाताधर्मकथासूत्र- यह छठा अंग आगम है। इसका अन्वर्थक यह है कि जिसमें ज्ञात अर्थात उदाहरणों द्वारा धर्मकथाएँ प्रज्ञप्त हैं अथवा जिस कथा में उदाहरणों के द्वारा विषय समझाया गया है वह ज्ञाताधर्मकथा है।107 डॉ. सागरमलजी जैन के अनुसार इसमें ज्ञातृवंशीय महावीर द्वारा आख्यात कथारूपकों का संकलन है अत: इसका नाम ज्ञाताधर्मकथा है। सामान्यतया इसमें न्याय-नीति आदि के सामान्य नियमों को दृष्टान्तों द्वारा समझाया गया है तथा मेघकुमार आदि की ऐतिहासिक एवं अण्डक, तुम्ब आदि की रूपक कथाएँ उल्लिखित कर भव्य जीवों को प्रतिबोध दिया गया है। ___ इसके प्रथम श्रुतस्कन्ध के उन्नीस अध्ययनों में मुख्य रूप से मेघकुमार, शैलक राजर्षि, द्रौपदी, चिलातीपत्र, पुण्डरीक-कण्डरीक आदि के कथानकों के माध्यम से तप-संयम की प्रेरणा दी गई है। द्वितीय श्रुतस्कन्ध के दस वर्गों में इन्द्रों की अग्रमहिषियों (मुख्य इन्द्राणियों) के रूप में उत्पन्न होने वाली स्त्रियों की कथाएँ हैं।
नन्दी के अनुसार इसमें दो श्रुतस्कन्ध, उनतीस अध्ययन, उनतीस उद्देशक, उनतीस समुद्देशक एवं संख्येय हजार पद हैं। जबकि वर्तमान संस्करण