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जैन आगम : एक परिचय ... 29
चक्रवर्ती आदि के सम्बन्ध में कुछ सूचनाएँ हैं । यह ग्रन्थ कोश शैली में ग्रथित है एवं स्मरण रखने की दृष्टि से बहुत उपयोगी है।
नन्दीसूत्र के अनुसार इस तृतीय अंग में एक श्रुतस्कन्ध, दस अध्ययन, इक्कीस उद्देशक, इक्कीस समुद्देशक एवं बहत्तर हजार पद हैं। वर्तमान में इसकी श्लोक संख्या 3770 अथवा 3750 है।
4. समवायांगसूत्र - द्वादशांगी में समवायांग का चतुर्थ स्थान है। इस आगम में जीव-अजीव आदि पदार्थों का विवेचन है। इस आगम का नाम समवाय या समवाओ है । स्थानांग के समान समवायांग भी संख्या शैली में रचा गया है किन्तु इसमें संख्या एक से प्रारम्भ होकर कोटानुकोटि तक जाती है। इसमें जीव, अजीव, लोक, अलोक, आहार, लेश्या, इन्द्रिय कषाय, तीर्थंकर, गणधर, चक्रवर्ती और वासुदेव के वर्णन के साथ जैन भूगोल एवं खगोल की सामग्री भी संकलित हैं। स्थानांग और समवायांग जैसी कोश शैली वैदिक परम्परा के ग्रन्थ महाभारत के वनपर्व (अध्याय 134 ) एवं बौद्ध परम्परा के ग्रन्थ अंगुत्तरनिकाय एवं ‘पुग्गल पन्नत्ति' में भी प्राप्त होती है । समवायांग प्राकृत गद्य में रचित है, परन्तु जो अंश संग्रहणी सूत्रों से लिये गये हैं वे पद्य में भी हैं। वस्तुविज्ञान, जैन दर्शन एवं जैन इतिहास की दृष्टि से यह आगम अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
नन्दीसूत्र के मतानुसार इस चतुर्थ अंग में एक अध्ययन, एक श्रुतस्कन्ध और एक उद्देशक है। इसका उद्देशन एवं समुद्देशन काल भी एक है। इसमें एक लाख चवालीस हजार पद हैं। वर्तमान संस्करण में इसकी श्लोक संख्या सोलह सौ सतसठ तथा दूसरी मान्यतानुसार सतरह सौ सतसठ है।
5. व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवती) सूत्र - व्याख्याप्रज्ञप्ति पंचम अंग आगम है। इसका प्राकृत नाम ‘विवाह पण्णत्ति' है। टीकाकार के अनुसार 1. जिस ग्रन्थ में विषय का विविध रूपों में स्पष्टतया निरूपण किया गया हो उस ग्रन्थ को व्याख्या प्रज्ञप्ति कहते है । 2. व्याख्या + प्रज्ञा + आप्ति = व्याख्या-कुशलता से, प्रज्ञावान आप्त द्वारा प्राप्त ज्ञान जिस ग्रन्थ में है, वह व्याख्याप्रज्ञप्ति है। 105 3. समवायांग एवं नन्दीसूत्र के मतानुसार व्याख्या प्रज्ञप्ति में 36000 प्रश्नों का व्याकरण है अतः इसका नाम व्याख्याप्रज्ञप्ति है। 106
इस आगम की विषय वस्तु अन्य आगम ग्रन्थों की अपेक्षा अधिक विशाल है। इसमें एक तरह से लेकर सभी तरह के विषय समाहित हैं तथा जनमानस में