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28... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
उपलब्ध सूत्रकृतांगसूत्र में दो श्रुतस्कन्ध है - प्रथम श्रुतस्कंध में सोलह अध्ययन हैं और द्वितीय में सात अध्ययन हैं। इसके प्रथम श्रुतस्कन्ध में स्वमत, परमत, जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आस्रव, संवर, निर्जरा, बंध और मोक्ष आदि तत्त्वों का विश्लेषण है एवं नवदीक्षित श्रमणों के लिए हित- शिक्षाओं का उपदेश है। इसमें 180 क्रियावादी, 84 अक्रियावादी, 67 अज्ञानवादी एवं 32 विनयवादी ऐसे कुल 363 मतों का निरूपण किया गया है। द्वितीय श्रुतस्कंध के अध्ययनों में विभिन्न संप्रदायों के भिक्षुओं के आचार, कर्मबंध के तेरह स्थान, निर्दोष भिक्षा की विधि, मूलगुण एवं उत्तरगुणों की विवेचना हुई है। साथ ही इस श्रुतस्कन्ध के अन्त में लोकमूढ मान्यताओं का खण्डन, आर्द्रकुमार का दार्शनिक संवाद तथा गौतम स्वामी द्वारा नालंदा में दिये गये उपदेशों का वर्णन है । यह एक दार्शनिक ग्रन्थ है। इसमें उस युग में प्रचलित विभिन्न दार्शनिक मत मतान्तरों की जानकारी दी गई है।
नन्दी सूत्र के अनुसार इस द्वितीय अंग में दो श्रुतस्कन्ध, तेईस अध्ययन, तैंतीस उद्देशक हैं। इसके उद्देशन एवं समुद्देशन काल भी तैंतीस हैं। इसमें छत्तीस हजार पद है। वर्तमान उपलब्ध संस्करण में इसकी श्लोक संख्या 2100 है। 103
3. स्थानांगसूत्र— स्थानांग द्वादशांगी का तृतीय अंग है। स्थान शब्द अनेकार्थी है। नन्दीसूत्र में स्थानांगसूत्र की दो परिभाषाएँ बताई गई हैं। प्रथम व्याख्या के अनुसार कूट, शिखर, कुब्ज, कुण्ड, गुहा, आकर, हृद आदि स्थानों की यथावस्थित प्ररूपणा जिसमें की गई है वह स्थानांग कहलाता है । दूसरी व्याख्या के अनुसार इसमें एक से लेकर दस की संख्या तक के जीव और पुद्गलों की विविध अवस्थाओं अर्थात स्थानों का वर्णन किया गया है अतः इसका नाम स्थानांग है। 104
इसके प्रत्येक अध्ययन में अध्ययन की संख्या के अनुसार वस्तुओं का वर्णन किया गया है, जैसे प्रथम अध्ययन में एक लोक, एक अलोक आदि । दूसरे अध्ययन में दो क्रियाएँ, आत्मा के दो भेद आदि का निरूपण किया गया है जिससे एक, दो या तीन संख्या वाली वस्तु कौन-कौन सी है ? इसका बोध होता है। स्थानांगसूत्र के अध्ययन भी स्थान के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन स्थानों में तत्त्वज्ञान, ज्ञानमीमांसा, स्वसमय और परसमय, श्रद्धा, भक्ति, धर्म, दर्शन, आत्मा, जीव, जगत, हिंसा-अहिंसा आदि अनेक विषय समाहित है। तीर्थंकर,