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जैन आगम : एक परिचय ... 27
इस प्रकार आचारांग आदि बारह आगमों को अंग आगम कहा गया है। इन आगमों का सामान्य निरूपण इस प्रकार है
1. आचारांगसूत्र- द्वादशांगी में आचारांग का प्रथम स्थान है। इसका नाम इतना सार्थक है कि नाम से ही स्पष्ट हो जाता है कि यह आचार सम्बन्धी ग्रन्थ है। आचारांग निर्युक्ति में आचारांग को अंगों का सार कहा गया है।100 इस आगम में दो श्रुतस्कन्ध है। प्रथम श्रुतस्कन्ध में 9 अध्ययन और 44 उद्देशक हैं। इस प्रथम श्रुतस्कन्ध के 9 अध्ययनों में जीव हिंसा का निषेध, कर्मबंधन से मुक्ति, परीषहों पर विजय, रत्नत्रय की महत्ता आदि का विवेचन किया गया है। नौवें अध्ययन में भगवान महावीर की तपस्या एवं साधना का विस्तृत वर्णन है।
द्वितीय श्रुतस्कंध में साध्वाचार का विस्तृत वर्णन है। इसके 16 अध्ययन चार चूलिकाओं में विभक्त है। उनमें श्रमणों की आहार चर्या, शय्या, वस्त्र एवं पात्र ग्रहण, ठहरने के स्थान, स्थंडिल भूमि प्रेक्षा ( मल-मूत्र आदि की विसर्जन भूमि) आदि पर प्रकाश डाला गया है । पाँचवीं चूलिका विस्तृत होने के कारण निशीथसूत्र के नाम से अलग कर दी गई है। इसका काल ई.पू. प्रथम या दूसरी शती माना जाता है।
सामान्यतः इसमें दो श्रुतस्कन्ध, पच्चीस अध्ययन, पिच्यासी उद्देशक एवं पिच्यासी समुद्देशक हैं। नन्दीसूत्र में इसकी पद संख्या अठारह हजार है जबकि वर्तमान उपलब्ध संस्करण में इसकी श्लोक संख्या 2644 एवं 2654 दोनों मानी गई है। 101
2. सूत्रकृतांगसूत्र - सूत्रकृतांग द्वितीय अंग आगम है । सूत्रकृतांग के सूतगड-सूत्रकृत, सुत्तकड (सूत्रकृत), सूयगड - सूचाकृत नाम भी मिलते हैं।
1. सूतगड- सूत अर्थात उत्पन्न, कृत अर्थात किया हुआ अर्थात यह भगवान महावीर से उत्पन्न और गणधरों द्वारा ग्रथित (कृत) है इसलिए इसका नाम सूतकृत है।
2. सुत्तकडं - नन्दी टीका मलयगिरि (पृ. 213 ) के अनुसार जिसमें सूत्रानुसार तत्त्वबोध दिया जाता है वह सूत्रकृत कहा जाता है। इस व्याख्या से सभी आगम सूत्रकृत कहे जा सकते हैं। पर रूढ़ि से यह आगम ही सूत्रकृत कहा जाता है।
3. सूयगडं- इसमें स्व और पर सिद्धान्त को सूचित किया गया है अतः इसका नाम सूचाकृत है। 102