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26... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण ___ चौराशी आगमों के नाम- 1 से 45 तक आगमों के नाम पूर्ववत जानना चाहिए। शेष आगमों के नाम इस प्रकार हैं
46. कल्पसूत्र 47. यतिजीतकल्प 48. श्राद्धजीतकल्प 49. पाक्षिकसत्र 50. क्षमापनासूत्र- ये दोनों आवश्यकसूत्र के अंग है। 51. वंदित्तु 52. ऋषिभाषित 53. अजीवकल्प 54. गच्छाचार 55. मरणसमाधि 56. सिद्ध प्राभृत 57. तीर्थोद्गार 58. आराधनापताका 59. द्वीपसागर प्रज्ञप्ति 60. ज्योतिष करण्डक 61. अंग विद्या 62. तिथि-प्रकीर्णक 63. पिण्डविशुद्धि 64. सारावली 65. पर्यन्ताराधना 66. जीवविभक्ति 67. कवच प्रकरण 68. योनि प्राभृत 69. अंग चूलिका 70. वर्ग चूलिका 71. वृद्ध चतुःशरण 72. जम्बू पयन्ना 73. आवश्यक नियुक्ति 74. दशवैकालिक नियुक्ति 75. उत्तराध्ययन नियुक्ति 76. आचारांग निर्यक्ति 77. सूत्रकृतांग नियुक्ति 78. सूर्यप्रज्ञप्ति 79. बृहत्कल्प नियुक्ति 80. व्यवहार नियुक्ति 81. दशाश्रुतस्कन्ध नियुक्ति 82. ऋषिभाषित नियुक्ति 83. संसक्तनियुक्ति 84. विशेषावश्यक भाष्य।98
जैन आगमों का परिचय बारह अंग सूत्र
तीर्थकरों द्वारा उपदिष्ट एवं गणधरों द्वारा रचित आचारांग आदि आगम शास्त्र अंग आगम कहलाते हैं। अंग आगम की कल्पना श्रृत पुरुष के रूप में की गई है। जैसे पुरुष के हाथ-पैर आदि बारह अंग होते हैं, वैसे ही श्रुत रूपी पुरुष के भी आचार आदि बारह अंग होते हैं। जो ग्रन्थ श्रुतपुरुष के अंगरूप माने गये हैं, वे अंगप्रविष्ट कहलाते हैं। आचार्य मलयगिरि ने द्वादशांगी को श्रुतपुरुष के रूप में इस प्रकार उपमानित किया है-99
पुरुष के अंग श्रुतपुरुष के अंग दो चरण
आचार, सूत्रकृत दो जंघा
स्थान, समवाय दो उरू
भगवती, ज्ञाताधर्मकथा उदर, पीठ
उपासकदशा, अन्तकृतदशा भुजाद्वय
अनुत्तरोपपातिकदशा, प्रश्नव्याकरण ग्रीवा
विपाकश्रुत सिर
दृष्टिवाद