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जैन आगम : एक परिचय ...25 वर्गीकरण के द्वारा वर्तमान में उपलब्ध कौनसा आगम किस वर्ग में आता है? यह स्पष्ट हो जाता है। नव्य वर्गीकरण निम्नानुसार है-97 ___1. अंग आगम- 1. आचारांग 2. सूत्रकृतांग 3. स्थानांग 4. समवायांग 5. व्याख्याप्रज्ञप्ति 6. ज्ञाताधर्मकथा 7. उपासकदशा 8. अन्तकृतदशा 9. अनुत्तरोपपातिकदशा 10. प्रश्न व्याकरण 11. विपाकश्रुत और 12. दृष्टिवाद (यह अंगसूत्र विच्छिन्न है)।
2. उपांग आगम- 1. औपपातिक 2.राजप्रश्नीय 3. जीवाभिगम 4. प्रज्ञापना 5. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति 6. सूर्यप्रज्ञप्ति 7. चन्द्रप्रज्ञप्ति 8. निरयावलिका 9. कल्पावतंसिका 10. पुष्पिका 11. पुष्पचूलिका और 12. वृष्णिदशा।
3. मूल आगम- 1. उत्तराध्ययन 2. दशवैकालिक 3. आवश्यकसूत्र और 4. पिण्डनियुक्ति। स्थानकवासी एवं तेरापंथी परम्परा में आवश्यकसूत्र एवं पिण्डनियुक्ति के स्थान पर क्रमश: नन्दी सूत्र एवं अनुयोगद्वार को मूलसूत्र माना गया है।
4. छेदसूत्र- 1. दशाश्रुतस्कन्ध 2. बृहत्कल्प 3. व्यवहार 4. निशीथ 5. महानिशीथ और 6. जीतकल्प। स्थानकवासी एवं तेरापंथी सम्प्रदाय में महानिशीथ एवं जीतकल्प को छोड़कर शेष चार सूत्रों को ही छेदसूत्र के रूप में स्वीकारा गया है।
5. चूलिकासूत्र- 1. नन्दीसूत्र 2. अनुयोगद्वार।
6. प्रकीर्णकसूत्र- 1. चतुःशरण 2. आतुर प्रत्याख्यान 3. महा प्रत्याख्यान 4. भक्तपरिज्ञा 5. तंदुलवैतालिक 6. संस्तारक 7. गच्छाचार 8. गणिविद्या 9. देवेन्द्रस्तव 10 मरणसमाधि। समाचारी भेद या परम्परा भेद से प्रकीर्णक सूत्रों में नामान्तर भी मिलते हैं। इस प्रकार 11 अंग, 12 उपांग, 4 मूल, 6 छेद, 2 चूलिका, 10 प्रकीर्णक ये कुल 45 आगम होते हैं।
बत्तीस आगमों का वर्गीकरण- स्थानकवासी एवं तेरापंथी परम्परा मान्य 32 आगमों की वर्गीकृत सूची इस प्रकार है
अंग- एक से ग्यारह अंगसूत्रों के नाम पूर्ववत है। उपांग- एक से बारह उपांग सूत्रों के नाम पूर्ववत है। मूलसूत्र- 1. दशवैकालिक 2. उत्तराध्ययन 3. अनुयोगद्वार 4. नन्दीसूत्र। छेदसूत्र- 1. निशीथ 2. व्यवहार 3. बृहत्कल्प 4. दशाश्रुतस्कन्ध। आवश्यकसूत्र- इस प्रकार 11 + 12 + 4 + 4 + 1 ऐसे कुल बत्तीस आगम होते हैं।