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________________ 22... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण इस प्रकार प्रारम्भिक युग से अब तक आगम साहित्य का चार तरह से विभागीकरण किया गया जिसमें आज उत्तरवर्ती विभाजन को प्राथमिकता दी जाती है। आगम रचना के प्रकार तीर्थंकर (आप्त) उपदिष्ट वाणी दो प्रकार से संकलित है- 1. कृत और 2. नि!हण। जो आगम स्वतंत्र रूप से निर्मित हुए हैं वे कृत कहलाते हैं जैसेगणधरों द्वारा आचारांग आदि सूत्रों एवं स्थविरों द्वारा औपपातिक आदि उपांग सूत्रों की रचना कृत है यानी अंग एवं उपांग सूत्र स्व-रचित ग्रन्थ होने से कृत कहे जाते हैं। जो आगम पूर्वो एवं द्वादशांगी से उद्धृत करके निर्मित हुए हैं वे नियूंढ कहलाते हैं। ये आगम स्थविरों द्वारा संकलित मात्र होते हैं। वर्तमान में निम्न आगमों को निर्दृढ़ माना है- 1. आचारचूला 2. दशवैकालिक 3. निशीथ 4. दशाश्रुतस्कन्ध 5. बृहत्कल्प 6. व्यवहार 7. उत्तराध्ययन का परीषह नामक द्वितीय अध्ययना82 ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर यह स्पष्टीकरण भी आवश्यक है कि आचारचूला- चतुर्दश पूर्वी भद्रबाहुसूरि द्वारा निर्मूढ़ की गई है। दशवैकालिक- दशवैकालिकसूत्र की विषयवस्तु का नि!हण चतुर्दशपूर्वी शय्यंभवसूरि द्वारा विभिन्न पूर्वो से किया गया है जैसे- चतुर्थ अध्ययन आत्मप्रवाद पूर्व से, पंचम अध्ययन कर्मप्रवाद पूर्व से, सप्तम अध्ययन सत्यप्रवाद पूर्व से और शेष अध्ययन प्रत्याख्यान पूर्व की तृतीय वस्तु से उद्धृत किए गए हैं। द्वितीय मान्यतानुसार दशवैकालिक द्वादशांगी से उद्धृत है।83 निशीथ- आचार्य भद्रबाहुस्वामी द्वारा प्रत्याख्यान नामक नौवें पूर्व से नियूंढ किया गया है।84 दशाश्रुतस्कंध, बृहत्कल्प और व्यवहार- ये तीनों भद्रबाहु के द्वारा प्रत्याख्यान पूर्व से निर्वृहित है।85 इन नियूंढ ग्रन्थों के सम्बन्ध में अन्य मत-मतान्तर भी हैं। ___ सारांशत: निर्मूढ़ आगम भिन्न-भिन्न पूर्वो एवं अंगों से उद्धृत किए गए हैं। यद्यपि निर्मूढ़ रचनाओं के अर्थ प्ररूपक तीर्थंकर हैं और सूत्र रचयिता गणधर है। इसके बावजूद भी ये आगम जिन पूर्वधरों या श्रुतस्थविरों द्वारा उद्धृत किए गए, वे ही उसके कर्ता के रूप में प्रसिद्ध हो गये। जैसे- दशवैकालिक के कर्ता शय्यंभव, निशीथ आदि छेद सूत्रों के कर्ता भद्रबाहु आदि।
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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