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20... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण देखा कि पुष्यमित्र जैसा बुद्धि, मेघा और धारणा से सम्पन्न शिष्य भी श्रुतरूप समुद्र का अवगाहन कठिनाई से कर रहा है तब भविष्य में अल्पमेघावी मनि सम्पूर्ण श्रुत का समग्रता से अवगाहन कैसे कर पायेंगे? तब युग, क्षेत्र और काल के अनुरूप शासन पर अनुग्रह कर पृथक्त्व-अनुयोग की व्यवस्था की। ___ इस प्रकार आर्यरक्षित से पूर्व अपृथक्त्वानुयोग का प्रचलन था जो व्याख्यात्मक पद्धति से क्लिष्ट होने के कारण सामान्य मुनियों के श्रुत अध्ययन हेतु कठिन समझा जाने लगा। इसी पद्धति को सुबोधपूर्ण बनाने के लिए आर्यरक्षित ने पृथक्त्वानुयोग का प्रवर्तन किया। यह ज्ञातव्य है कि उक्त वर्गीकरण करने के उपरान्त भी इस प्रकार नहीं कहा जा सकता है कि प्रथमानुयोग आदि से प्रतिबद्ध ग्रन्थों में अन्य अनुयोगों की विषय वस्तु का वर्णन नहीं है अर्थात अनुयोगबद्ध ग्रन्थों में अन्य वर्णन भी है। जैसे उत्तराध्ययनसूत्र में धर्मकथाओं के अतिरिक्त दार्शनिक तत्त्व भी पर्याप्त रूप से है। भगवतीसूत्र में सभी विषयों का निरूपण है। सारांश यह है कि कुछ आगमों को छोड़कर शेष में चारों अनुयोगों का संमिश्रण है इस कारण यह स्थूल वर्गीकरण ही रहा।69
दिगम्बर परम्परा मूल आगमों का अभाव मानती है, यद्यपि कुछ ग्रन्थों एवं ग्रन्थांशों को आगम के समकक्ष महत्त्व देती है तदनुसार अनुयोग रूपात्मक वर्गीकरण इस प्रकार है
1. प्रथमानुयोग- महापुरुषों के जीवन चरित्र का वर्णन करने वाले ग्रन्थ ____ जैसे- पद्मपुराण, हरिवंशपुराण, आदिपुराण, उत्तरपुराण आदि।
2. करणानुयोग- लोकालोक विभक्ति, काल, गणित आदि का निरूपण ___करने वाले ग्रन्थ जैसे- सूर्यप्रज्ञप्ति, चन्द्रप्रज्ञप्ति, जयधवला आदि। 3. चरणानयोग- आचार प्रधान विषयों का वर्णन करने वाले ग्रन्थ जैसे
मूलाचार, त्रिवर्णाचार, रत्नकरण्डक श्रावकाचार आदि। 4. द्रव्यानयोग- द्रव्य, गण, पर्याय तत्त्व आदि का विश्लेषण करने वाले
ग्रन्थ जैसे- प्रवचनसार, समयसार, नियमसार, आप्तमीमांसा आदि।70 चतुर्थ वर्गीकरण
___ आगम साहित्य का अन्तिम वर्गीकरण अंग, उपांग, मूल एवं छेद के रूप में उपलब्ध होता है। इस उत्तरवर्ती विभाजन का सर्वप्रथम उल्लेख प्रभावक चरित्र (वि.सं. 1334) में प्राप्त होता है। यदि विकासक्रम की दृष्टि से देखा जाए तो