SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 14... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण दे दिया गया, किन्तु दुर्भाग्य से यह पूर्व साहित्य आज उपलब्ध नहीं है। वस्तुतः वीर निर्वाण की दूसरी शती से पूर्वों का विच्छेद होना प्रारम्भ हो चुका था और दसवीं शती के अन्त तक ये सर्वथा लुप्त हो गये । चौदह पूर्वों के नाम ये हैं 1. उत्पाद पूर्व 2. अग्रायणी पूर्व 3. वीर्यप्रवाद पूर्व 4. अस्ति नास्ति प्रवाद पूर्व 5. ज्ञानप्रवाद पूर्व 6. सत्यप्रवाद पूर्व 7. आत्मप्रवाद पूर्व 8. कर्मप्रवाद पूर्व 9. प्रत्याख्यान पूर्व 10. विद्यानुप्रवाद पूर्व 11. अवन्ध्य पूर्व 12. प्राणायुप्रवाद पूर्व 13. क्रियाविशाल पूर्व 14. लोकबिन्दुसार पूर्व 56 अंग— सामान्यतया भारतीय दर्शन की जैन बौद्ध एवं वैदिक तीनों परम्पराओं में 'अंग' शब्द का प्रयोग देखा जाता है। जैन परम्परा में 'अंग' शब्द आचारांग आदि बारह आगम सूत्रों के लिए प्रयुक्त है। बारह अंगों के नाम इस प्रकार हैं- 1. आचारांग 2. सूत्रकृतांग 3. स्थानांग 4. समवायांग 5. भगवती 6. ज्ञाताधर्मकथा 7. उपासकदशा 8 अन्तकृतदशा 9. अनुत्तरोपपातिकदशा 10. प्रश्नव्याकरण 11. विपाक और 12. दृष्टिवाद। 57 वैदिक परम्परा में वेदाध्ययन में सहयोगी ग्रन्थों को 'अंग' कहा गया है तथा वे ग्रन्थ छह प्रकार के बतलाए गए हैं- 1. शिक्षा 2. कल्प 3. व्याकरण 4. निरूक्त 5. छन्द 6. ज्योतिष। बौद्ध पिटकों में बुद्ध के वचनों को नवांग और द्वादशांग कहा गया है। नवांग के नाम ये हैं 1. सुत्त- बुद्ध का गद्यमय उपदेश । 2. गेय्य - बुद्ध का गद्य-पद्य मिश्रित अंश। 3. वैयाकरण - बुद्ध के व्याख्यात्मक ग्रन्थ 4. गाथा - पद्य निर्मित ग्रन्थ 5. उदान - बुद्ध के मुखारविन्द से निःसृत प्रीति - उद्गार | 6. इतिवृत्तक- लघु प्रवचन 7. जातक - बुद्ध के पूर्व भव 8. अब्भुत धम्म- चमत्कारिक वस्तुओं एवं विभूतियों के वर्णन परक ग्रन्थ 9. वेदल्ल - प्रश्नोत्तर शैली में रचित ग्रन्थ। इन्हीं नौ प्रकारों में - अवदान, वैपुल्य एवं उपदेशधर्म इन तीन को मिलाने से बौद्धों के द्वादशांग होते हैं। 58 इस प्रकार मूलतः अंग शब्द विशिष्ट ग्रन्थों के लिए व्यवहृत है। द्वितीय वर्गीकरण मूलागमों का द्वितीय वर्गीकरण देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण के समय अर्थात वीर निर्वाण के 1000 वर्ष के आस-पास हुआ था। उन्होंने आगम साहित्य के अंगप्रविष्ट एवं अंगबाह्य ऐसे दो भेद किए हैं | 59
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy