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________________ 10... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण कुछ चूर्णियों में नागार्जुन नाम से पाठान्तर मिलते हैं। पण्णवणा जैसे अंगबाह्य सूत्रों में भी इस प्रकार के पाठान्तरों का निर्देश है। 42 पंचम वाचना- आगम संकलन का पांचवाँ प्रयास वीर निर्वाण के 900 वर्षों के बाद (980-993 के मध्य ) वल्लभीपुर में देवर्द्धिगणिक्षमाश्रमण की अध्यक्षता में हुआ। आधुनिक विद्वानों के अभिप्रायानुसार वीर निर्वाण के 900 वर्ष बाद कालजन्य स्थिति के प्रभाव से बहुश्रुत मुनियों की स्मृति भी दुर्बल हो चुकी थी, विशाल ज्ञान को स्मृति में रख पाना कठिन हो गया था अतः मुनियों का सम्मेलन किया गया और स्मृति में शेष सभी सूत्र पाठों को संकलित किया गया। साथ ही उन्हें पुस्तकारूढ़ भी कर दिया गया। 43 यह पुस्तक रूप में लिखने का प्रथम प्रयास था। कहीं-कहीं यह उल्लेख भी आता है कि आचार्य स्कन्दिल एवं नागार्जुन के समय ही आगम पुस्तकारूढ़ कर दिये गये थे। 44 इस वाचना काल में आगम- पाठों को पुस्तकारूढ़ करते समय माथुरी और वल्लभी वाचनाओं का समन्वय कर उनमें एकरूपता लाने का प्रबल प्रयास किया गया। जहाँ मत-मतान्तरों की बहुलता थी वहाँ माथुरी वाचना को मूल स्थान दिया तथा वल्लभी वाचना के पाठों को पाठान्तर में स्थान दिया। यही कारण है कि आगमिक व्याख्या ग्रन्थों में यत्र-तत्र 'नागार्जुनीयास्तु पठन्ति' इस प्रकार का निर्देश मिलता है। इसी के साथ जहाँ-जहाँ समान पाठ आये, वहाँ पुनरावृत्ति न करते हुए उनके लिए विशेष ग्रन्थ या स्थल का निर्देश किया जैसे'जहा उववाइए, जहा पण्णवणाए ।' एक ही आगम में एक बात अनेक बार आने पर 'जाव' शब्द का प्रयोग कर उसका अन्तिम शब्द सूचित कर दिया गया जैसे- 'णागकुमारा जाव विहरंति' 'तेणं कालेणं जाव परिसा णिग्गया'। इसके अतिरिक्त भगवान महावीर के पश्चात की कुछ मुख्य घटनाओं को भी आगमों में स्थान दिया गया। इस प्रकार यह वाचना वल्लभी में होने के कारण 'वल्लभी वाचना' कही गई। इसके पश्चात आगमों की सर्वमान्य एक भी वाचना नहीं हुई तथा वीर निर्वाण की दसवीं शती के अनन्तर, पूर्वधर आचार्य की परम्परा ही विलुप्त हो गई। 45 वर्तमान में जो आगम उपलब्ध हैं वे देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण की वाचना के हैं। उसके बाद उनमें किसी तरह का परिवर्तन या परिवर्द्धन नहीं हुआ, ऐसा
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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