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जैन आगम : एक परिचय ...9
किए गए। अत: इस वाचना को 'पाटलीपत्र' वाचना कहते हैं।36
द्वितीय वाचना- आगम संकलन की दूसरी वाचना वीर निर्वाण 300 से 330 के मध्य राजा खारवेल के सत्प्रयासों से सम्पन्न हुई। हिमवन्त थेरावली के अनुसार जैन धर्मोपासक राजा खारवेल ने उड़ीसा के कुमारी पर्वत पर जैन मुनियों का एक सम्मेलन करवाया और मौर्यकाल में जो अंग विस्मृत हो गये थे, उन्हें संकलित कराया।37 इस संघ के प्रमुख सुस्थित एवं सुप्रतिबद्ध दोनों सहोदर थे। खण्डगिरि व उदयगिरि में जो शिलालेख उत्कीर्ण है, उससे स्पष्ट है कि आगम संकलन हेतु यह सम्मेलन किया गया था।38
तृतीय वाचना- आगम संकलन का तृतीय प्रयास वीर निर्वाण 827-840 के मध्य में हुआ। नन्दीचूर्णि39 के अनुसार उस समय बारह वर्ष का दुष्काल पड़ा। इस प्रभाव से अनेक वृद्ध एवं बहुश्रुत श्रमण परलोकवासी हो गये और कुछ युवक मुनि विशुद्ध आहार की अन्वेषणा-गवेषणा के लिए दूर-दूर क्षेत्रों की ओर चले गये तथा समयाभाव वश कंठाग्र पाठों का यथावत स्वाध्याय न कर पाने के कारण उनके सूत्र पाठ भी काफी विस्मृत हो गये। दुष्काल की सम्पन्नता के बाद मथुरा में आर्य स्कन्दिल के नेतृत्व में विशाल श्रमण संघ एकत्रित हुआ। इस सम्मेलन में मधुमित्र, संघहस्ति आदि 150 श्रमण उपस्थित थे।40 जिसको जो याद था, वह संकलित किया गया। इस समय भी केवल अंग सूत्रों की ही वाचना हुई और इन सूत्रों के लिए कालिक शब्द व्यवहृत हुआ। यह वाचना मथुरा में सम्पन्न होने के कारण ‘माथुरी वाचना' कहलाई। ___ एक मान्यता यह है कि इस द्वादशवर्षीय दुष्काल में श्रुत नष्ट नहीं हुआ था। जो विशिष्ट अनुयोगधर साधु थे, वे काल कवलित हो गये। एकमात्र स्कन्दिलाचार्य ही अनुयोगधर बचे। उन्होंने मथुरा में पुनः से अनुयोग का प्रवर्तन किया, इसलिए इसे 'माथुरी वाचना' कहा गया तथा यह स्कन्दिलाचार्य का अनुयोग कहलाया।
चतुर्थ वाचना- आगम संकलन का चतुर्थ प्रयास मथुरा सम्मेलन के समय वीर निर्वाण 827-840 के आस-पास वल्लभीपुर (सौराष्ट्र) में नागार्जुनसूरि की अध्यक्षता में हुआ, जो 'वल्लभी वाचना' या 'नागार्जुनी वाचना' के नाम से प्रसिद्ध है।1 इस वाचना के समय जो श्रमण संघ एकत्रित हुआ, उन्हें बहुत कुछ श्रुत विस्मृत हो चुका था, परन्तु जो स्मृति में था उनका संकलन किया गया।