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398... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण डोरी, डंडा आदि उपकरणों को निश्चित समय तक शरीर से संस्पर्शित करते हुए रखना है।
__श्रमणाचार का सामान्य नियम है कि जैन साधु-साध्वी स्वकीय उपधि को सदैव अपने समीप ही रखें। आहार या निहार हेतु बाहर गमन करना हो तो सहवर्ती साधु को अपनी उपधि सुपुर्द करके जायें। यह संयम रक्षा के उद्देश्य से कहा गया है। ___ योगवाही अधिक हों तो प्रत्येक को पृथक-पृथक संघट्ट क्रिया करने की आवश्यकता नहीं है, दो-तीन के मध्य एक योगवाही भी संघट्टा ले सकते हैं और सहवर्ती अन्य योगवाही को संघट्टित (स्पर्शित) पात्र आदि उपकरण दे सकते हैं, किन्तु इस क्रिया में पूर्ण रूप से सजग रहना जरूरी है। ___ कुछ परम्पराओं में कंबली के ऊपर पात्र रखकर संघट्टा लेते हैं। संघट्टा लेते समय उपयोगी सभी उपकरणों को इस भाँति अलंग-अलग रखते हैं कि वे एकदूसरे को स्पर्श न कर सकें। फिर एक-एक उपकरण को प्रमार्जन पूर्वक उठाकर अपने शरीर से स्पर्श करते हुए रखते हैं।
कुछ परम्पराओं में उपकरणों को कंबली के बिना भूमि पर अलग-अलग रखकर ग्रहण करते हैं।
कुछ आचार्यों के अनुसार यदि कंबली शरीर से स्पर्श कर रही हो, तो उपयोग में आने वाले सभी उपकरणों को एक-एक करके ग्रहण करने की
आवश्यकता नहीं है, उन्हें कंबली के ऊपर अलग-अलग रखने से संघट्टित माना जा सकता है और उस स्थिति में आहार ग्रहण भी कर सकते हैं।
वस्तुत: कालग्रहण, कालमांडला, नोंतरा, संघट्टा ग्रहण, आउत्तवाणय ग्रहण, प्रवेदन, पाटली स्थापना आदि विधियाँ गुरुगम से समझकर करनी चाहिए।
योग तप- आगम सूत्रों के पाठों का नया अध्ययन करने के लिए जो तप किया जाता है, उसे योग तप कहते हैं। योगवहन काल में सूत्र प्रवेश के दिन और निकलने के दिन आयंबिल रहता है।
विधिमार्गप्रपा के अनुसार कुछ सूत्रों को छोड़कर शेष सभी सूत्रों के योग में श्रुतस्कन्ध के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा के दिन आयंबिल करना चाहिए तथा बाकी दिनों में नीवि करनी चाहिए।