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________________ 390... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण आचारकल्पिक - उत्तराध्ययन, आचारांग एवं निशीथ - इन सूत्रों का योग किया हुआ साधु आचारकल्पिक कहलाता है तथा आचारकल्पिक ही गणियोग वहन करने का अधिकारी होता है | 2 आगाढ़योग– ‘आ समन्तात गाढः आगाढ़' - जो चारों ओर से प्रकृष्ट है, अनिवार्य रूप से करने योग्य है वह आगाढ़ कहलाता है। जिन सूत्रों के योग प्रारम्भ करने के पश्चात उन्हें पूर्ण करने के बाद ही बाहर निकला जा सकता है, ऐसे सूत्रों का योगोद्वहन करना आगाढ़ योग कहलाता है। आगाढ़ सूत्रों के योग को अधूरा क्यों नहीं छोड़ा जा सकता ? इसका मूल रहस्य ज्ञानीगम्य है। कितनी ही बातें तर्कगम्य होती हैं कितनी ही श्रद्धागम्य | योग आदि की क्रियाएँ श्रद्धागम्य हैं। उनके कारण ज्ञानियों ने देखे हैं। हर बातें शास्त्र में वर्णित नहीं होती । आगाढ़ सूत्रों के योग में से बीच में बाहर न निकलने का एक कारण यह माना जाता है कि वे मन्त्र प्रधान एवं गूढ़ रहस्यमय होने से अधूरे छोड़ देने पर देव कुपित हो सकते हैं। कष्ट या मृत्यु भय आदि की संभावना रहती है। कई सूत्र ऐसे भी होते हैं जिनका अधूरा ज्ञान मन में अनेक शंकाएँ या विभ्रम की स्थिति उत्पन्न कर सकता है अतः उन्हें बीच में नहीं छोड़ना ही अधिक श्रेयस्कर है। इन्हीं हेतुओं से आगाढ़ सूत्रों को अधूरा नहीं छोड़ने का निर्देश है। अनागाढ़ योग - जिन सूत्रों के योग में प्रवेश करने के बाद कोई विषम परिस्थिति उत्पन्न हो जाने के कारण उसे अधूरा छोड़ना अत्यावश्यक हो जाये तो प्रवेश करने के चार दिन बाद बाहर निकल सकते हैं। ऐसे सूत्रों के योग अनागाढ़ कहलाते हैं। नोंतरा- नोंतरा अर्थात आमन्त्रण । यह क्रिया सूर्यास्त के समय करते हैं और इसमें 27-27 मांडले किये जाते हैं। मूलतः योगवाहियों को कालग्रहण आदि विशिष्ट क्रियाओं में जागरूक रखने हेतु आगम देवता ( श्रुत देवता) को आमन्त्रित किया जाता है और उन्हें योग्य स्थान पर अधिष्ठित करने हेतु भूमि शुद्धि की जाती है । रामचन्द्रसूरी समुदायवर्ती पूज्य रत्नयश विजयजी म.सा. के अनुसार भी नोंतरा के समय श्रुतज्ञान के अधिष्ठायक देवों को आमन्त्रित करते हैं। इसी के साथ ज्ञानार्जन के उस कालविशेष को उपद्रव रहित करने के लिए दिशापालक देवों को भी आमन्त्रित किया जाता है। प्रत्येक आगम के अधिष्ठायक देव पृथक-पृथक भी हैं और एक भी हैं जैसे- श्रुतदेवता, सरस्वती
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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