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________________ परिशिष्ट... 389 के अन्तर्गत नाम निर्देश पूर्वक विषय का निरूपण करने वाला प्रकरण विशेष भी उद्देशक कहलाता है। कुछ आगम सूत्रों के योग में उद्देशक पृथक समझाए जाते हैं और वे अविभक्त होते हैं। • योगोद्वहन में प्रवेदन आदि के समय प्रयुक्त उद्देश, समुद्देश, अनुज्ञा आदि शब्द उपर्युक्त 'उद्देशक' शब्द से भिन्न अर्थवाची हैं। उद्देशक- यह शब्द शास्त्र के खण्ड विशेष का सूचक है। अनुमति और उद्देशादि शब्द आगम की वाचना के द्योतक हैं। समुद्देश में गुरु द्वारा प्रदत्त सूत्रार्थ को उसी तरह आत्मस्थ एवं स्थिर परिचित कर वापस लौटाना। यानी गुरु को सूत्रार्थ सुनाकर अभ्यास यथावत किया है - ऐसा प्रवेदन करना अभिमत है। अनुज्ञा - गुर्वानुमति पूर्वक उद्देश + समुद्देश प्राप्त सूत्रार्थ को अन्य सुयोग्य आत्मा तक पहुँचाने का कार्य है। उद्देश आदि के निम्न अर्थ भी हैं उद्देश - • आगम की वाचना ग्रहण करने हेतु गुरु की आज्ञा लेना । • सूत्र पढ़ने के लिए आज्ञा देना। • उद्देसो अभिनव अधितस्स' - नये मूल पाठ की वाचना देना। समुद्देश- • आगम की अर्थ रूप वाचना ग्रहण करने में विशेष रूप से गुरु की आज्ञा लेना। · सूत्र स्थिर करने के लिए आज्ञा देना । • ‘अथिरस्स समुद्देसो' कण्ठस्थ किए हुए पाठ को पक्का एवं शुद्ध करना। अनुज्ञा- • आगम वाचना के समापन का आदेश प्राप्त करना । • अन्य को पढ़ाने की आज्ञा प्राप्त करना । • 'थिरीभूयस्स अणुण्णा' - आगम पाठ शुद्ध रूप से स्थिर एवं कण्ठस्थ हो जाने पर दूसरों को सिखाने की आज्ञा देना अनुज्ञा कहलाता है। सार रूप में कहा जाए तो तुम्हें पढ़ना चाहिए- शिष्य के लिए इस प्रकार की गुरु आज्ञा या उपदेश रूप वचन या नये पाठ की वाचना देने को उद्देश कहते हैं। प्राचीन परम्परा में मौखिक स्वाध्याय होने से उद्देश की प्रवृत्ति होती थी। यह पठित ग्रन्थ विस्मृत न हो जाए अतः इसकी आवृत्ति करो, इसे स्थिर करो, इस प्रकार गुरु का आदेशमूलक वचन समुद्देश कहलाता है । पठित ग्रन्थ दूसरों को पढ़ाओ- इस प्रकार गुरु के आज्ञा रूप वचन को अनुज्ञा कहते हैं । 1
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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