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परिशिष्ट
योगोद्वहन एक प्राचीन एवं शास्त्रोक्त विधि है। इसमें कई पारिभाषिक एवं विषयीभूत विशिष्ट शब्दों का प्रयोग हुआ है। उनमें से कुछ शब्द आगम अध्ययन से सम्बन्धित है तो कई आगम सम्बन्धी विशिष्ट विषयों से और कई में गूढ़ शाब्दिक रहस्य भी समाहित हैं। यहाँ पर योगोद्वहन सम्बन्धी पारिभाषिक शब्दों के रहस्यार्थ एवं विशिष्टार्थ दिए जा रहे हैं। योगोद्वहन सम्बन्धी पारिभाषिक शब्दों के विशिष्टार्थ एवं रहस्यार्थ ___1. श्रुत 2. श्रुतस्कन्ध 3. अध्ययन 4. शतक 5. वर्ग- ये आगम सूत्रों के विभाग के नाम हैं। इसी तरह कांड, पद, वक्षस्कार, प्रकाश आदि संज्ञाओं का भी प्रयोग किया जाता है। इनका अर्थ विभाग/उपविभाग आदि रूप समझना चाहिए।
श्रुत- पूर्ण आगम श्रुत कहलाता है। जैसे- आचारांग, उत्तराध्ययन आदि सभी आगम सूत्र।
श्रुतस्कन्ध- आगम श्रुत का बृहद् भाग, आगम के अध्ययनों का समूह रूप बृहत्काय खंड, योगोद्वहन में आगम वाचना का खण्ड अथवा विश्राम रूप स्थल श्रुतस्कन्ध कहलाता है।
अध्ययन- जहाँ एक विषय के विवेचन की समाप्ति हो, वह अध्ययन कहलाता है। श्रुतस्कन्ध के विभाग को भी अध्ययन कहते हैं। शास्त्र के किसी एक विशिष्ट अर्थ के प्रतिपादक अंश को भी अध्ययन कहा गया है। योगोद्वहन में दिनों की संख्या भी अध्ययन रूप है। वाचना में विश्रामरूप विभाग को भी अध्ययन कहते हैं।
शतक- कुछ आगम सूत्रों में अध्ययन का अभाव होता है वहाँ ‘शतक' नाम की संज्ञा होती है। ये भी अध्ययन के समान ही होते हैं।
वर्ग- अध्ययन या शतक का खण्ड रूप विभाग वर्ग कहलाता है।
उद्देशक- वर्ग का खण्ड रूप विभाग उद्देशक कहलाता है। अध्ययन और शतक का विभाजन करने वाले लघु खण्ड भी उद्देशक कहे जाते हैं। अध्ययन