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कल्पत्रेप - विधि का सामाचारीगत अध्ययन ... 383
अध्ययनों (वर्तमान सामाचारी के अनुसार प्रारम्भ के चार अध्ययनों) का उच्चारण के साथ स्वाध्याय करें। उसके बाद उपयोग आदि की क्रिया करें।
खरतरगच्छ की वर्तमान परम्परा में स्वाध्याय उत्क्षेपण की यही विधि प्रचलित है। इसमें मुख्य अन्तर यह है कि दशवैकालिक सूत्र के चार अध्ययन अर्धावनत मुद्रा में बोले जाते हैं। ज्येष्ठ मुनि चारों अध्ययनों को प्रगट स्वर में बोलते हैं और शेष सभी श्रवण करते हुए स्वाध्याय करते हैं। 7
यह क्रिया प्रात:काल में स्थापनाचार्य के समक्ष गुरु की साक्षी में की जाती है । इस क्रिया के अन्तर्गत पहला कायोत्सर्ग स्वाध्याय स्थापना के निमित्त, दूसरा कायोत्सर्ग अस्वाध्याय के सम्बन्ध में उपयोग न रखा हो या किसी तरह का दोष लगा हो तो उससे निवृत्त होने के निमित्त, तीसरा कायोत्सर्ग छह माह के मध्य छींक आदि क्षुद्र उपद्रव हुए हों तो उसे दूर करने निमित्त एवं चौथा कायोत्सर्ग आगामी स्वाध्याय निर्विघ्न रूप से प्रवर्त्तित रहे, तदर्थ जिन शासन की सेवा में तत्पर रहने वाले सम्यक्त्वी देवी-देवताओं की आराधना के निमित्त करते हैं। स्वाध्याय निक्षेपण विधि
चैत्र एवं आसोज माह के शुक्ल पक्ष में स्वाध्याय निक्षेप ( स्वाध्याय न करने की) विधि करते हैं। वर्तमान परम्परा में यदि नवपद ओली की आराधना सप्तमी से प्रारम्भ हो तो पंचमी, अष्टमी से शुरू हो तो षष्ठी, दूसरी षष्ठी आदि से शुरू हो तो चतुर्थी तिथि के दिन यह विधि करते हैं।
विधिमार्गप्रपा एवं वर्तमान सामाचारी के अनुसार एक खमासमण देकर 'इच्छा. संदि. भगवन् ! सज्झाय निक्खिवणत्थं मुहपत्ति पडिलेहुं? इच्छं' कहकर मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन और द्वादशावर्त्त वन्दन करें।
उसके बाद एक खमासमण देकर कहें- 'इच्छा. संदि. भगवन् ! सज्झाय निक्खिवणत्थं काउस्सग्गं करेमो इच्छं ।' फिर 'सज्झाय निक्खिवणत्थं करेमि काउस्सग्गं पूर्वक अन्नत्थसूत्र बोलकर एक नमस्कार मन्त्र का कायोत्सर्ग करें। कायोत्सर्ग पूर्णकर प्रकट में नमस्कारमन्त्र बोलें।
किन स्थितियों में कल्पत्रेप करें?
सामान्यतया निम्न स्थितियों में कल्पत्रेप (प्रक्षालन पूर्वक शुद्धि) क्रिया करनी चाहिए।
वमन सम्बन्धी - यदि रात्रि में मलोत्सर्ग किया हो, वमन हुआ हो, भोजन मंडली के स्थान पर धान्यादि कण रह गए हों, शरीर से रुधिरादि निकला हो तो