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________________ 384... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण दसरे दिन प्रभात में उन-उन स्थानों की जल द्वारा शुद्धि करें। यदि स्थंडिल भूमि में मलोत्सर्ग किया हो तो वहाँ से उपाश्रय में आकर पिंडली एवं घुटने से नीचे तक के पैरों की जल द्वारा शुद्धि करें। भूमि सम्बन्धी- जिस भूमि पर पाँव एवं पात्रोपकरण की शुद्धि की जाती है, वह स्थान अशुद्ध हो जाता है। उस जगह को थोड़े जल से गीला कर दंडासन के अग्रभाग से उसे शुद्ध करें और उस दंडासन को अणाउत्त (अशुद्ध) स्थान में ले जाकर शुद्ध करें। यहाँ अणाउत्त शब्द से तात्पर्य उपाश्रय के मुख्य द्वार के समीप बायीं ओर पत्थर-ईंट आदि के टुकड़ों से घिरा हुआ स्थान विशेष है। इस स्थान को रूढ़ि से अणाउत्त कहते हैं। मलोत्सर्ग सम्बन्धी- यदि मलोत्सर्ग करना हो तो मल विसर्जन करने के पश्चात बायें हाथ में तीन चुल्लूभर पानी लेकर अपान स्थान की शुद्धि करें। फिर दाएँ हाथ में थोड़ा जल लेकर मस्तक पर छोड़ें अथवा दाएं हाथ की कोहनी के द्वारा जलग्रहण कर अधिस्थान लिंगों, जंघाओं एवं कलाईयों के स्थान पर जल की चार बूंदे डालकर उनकी शुद्धि करें। मलोत्सर्ग करने के पश्चात यदि अशुद्ध हाथ मुख पर लग जाए तब कल्पत्रेप के द्वारा ही मुखस्थान की शुद्धि होती है। यदि अधिस्थान लिंगों की शुद्धि करते समय तिरपनी (लोटे के आकार का जलपात्र) अथवा डोरी बाएँ हाथ या पाँव से स्पर्श हो जाये तो वह अशुद्ध हो जाती है। उस समय तिरपनी में रहे हुए जल को विसर्जित कर दें और डोरी को तिरपनी के अन्दर डालकर उसकी अन्य जल से शुद्धि करें। कंटक-अस्थि सम्बन्धी- उपाश्रय से बाहर भिक्षा हेतु या विहारादि कारणों से गमन करते हुए पाँव में काँटा लग जाए तो जिस हाथ से काँटा आदि निकालें, वसति में आकर उस हाथ की शुद्धि करें। यदि भिक्षाचर्या आदि के निमित्त गमन करते हुए डंडे से हड्डी का स्पर्श हो जाए तो उसकी शुद्धि करें। ___ पदार्थ सम्बन्धी- जिस अंग या उपांग के द्वारा अशुद्ध पात्रोपकरण का स्पर्श हो जाए अथवा किसी अंगीय भाग में से रक्त निःसृत हो रहा हो तो उससे व्यक्ति और स्थान दोनों अशुद्ध हो जाते हैं। यदि पूर्व दिन की संध्या को वसति का काजा न निकाला हो तथा रात भर तिरपनी आदि में पानी बचा हुआ रह गया हो और तिरपनी की डोरी भी उसी में लगी हुई रह गई हो तो वसति और पात्र दोनों अशुद्ध हो जाते हैं। परन्तु विहारादि के कारण तिरपनी की डोरी न निकालें तो वह अशुद्ध नहीं होती है।
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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