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________________ 382... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण सर्वप्रथम ईर्यापथिक प्रतिक्रमण करें। फिर स्वाध्याय उत्क्षेप की क्रिया गुरु द्वारा सम्पन्न की जाये। उसके बाद कल्पत्रेपक मुनि एक खमासमण देकर कहें'इच्छा. संदि. भगवन् ! छम्मासिय कप्प संदिसाऊं ? इच्छं।' पुन: एक खमासमण देकर बोलें- 'इच्छा. संदि. भगवन् ! छम्मासिय कप्प पडिग्गहुं? इच्छं।' फिर 'इच्छा. संदि. भगवन् ! सज्झाय उक्खिवणत्थं मुहपत्ति पडिलेहुँ? इच्छं' कहकर मुखवस्त्रिका का प्रतिलेखन करें और दो बार द्वादशावर्त वन्दन करें। उसके बाद कल्पत्रेपक मुनि एक खमासमण देकर कहें- 'इच्छा. संदि. भगवन् ! सज्झायं उक्खिवामो? इच्छं।' पुन: एक खमासमण देकर कहें'इच्छा. संदि. भगवन् ! सज्झाय उक्खिवणत्यं काउस्सग्गं करेमो'। फिर सज्झाय उक्खिवणत्थं करेमि काउस्सग्गं, अन्नत्थसूत्र बोलकर एक नमस्कार मन्त्र और एक लोगस्ससूत्र का चिंतन करें। कायोत्सर्ग पूर्णकर प्रकट में लोगस्ससूत्र बोलें। तत्पश्चात छह माह की शुद्धि करने वाले मुनिगण एक खमासमण देकर कहें- 'इच्छा. संदि. भगवन् ! असज्झाइय-अणाउत्त-ओहडावणत्यं काउस्सग्गं करेमो? इच्छं।' फिर असज्झाइय अणाउत्त ओहडावणियं करेमि काउसग्गं पूर्वक अन्नत्थसूत्र बोलकर चार लोगस्ससूत्र का चिंतन करें। कायोत्सर्ग पूर्णकर प्रकट में लोगस्ससूत्र बोलें। तदनन्तर कल्पत्रेपक मुनि एक खमासमण देकर कहें- 'इच्छा. संदि. भगवन् ! खुद्दोपद्दव ओहडावणत्थं काउस्सग्गं करेमो? इच्छं।' फिर खुद्दोपद्दवओहडावणियं करेमि काउस्सग्गं पूर्वक अन्नत्थसूत्र कहकर चार लोगस्ससूत्र का चिंतन करें। कायोत्सर्ग पूर्णकर प्रकट में लोगस्ससूत्र बोलें। उसके पश्चात पुनः एक खमासमण देकर कहें- 'इच्छा. संदि. भगवन् ! सक्काइवेयावच्चगर आराहणत्थं काउस्सग्गं करेमो? इच्छं।' फिर सक्काइवेयावच्चगर आराहणत्यं करेमि काउस्सग्गं पूर्वक अन्नत्थसूत्र कहकर चार लोगस्ससूत्र का चिंतन करें। कायोत्सर्ग पूर्णकर प्रगट में लोगस्ससूत्र बोलें। उसके बाद कल्पत्रेपक मुनि एक खमासमण देकर कहें- इच्छा. संदि. भगवन् ! सज्झायं संदिसावेमि? इच्छं।' पुनः एक खमासमणसूत्र पूर्वक वन्दन कर कहें- 'इच्छा. संदि. भगवन् ! सज्झायं करेमि? इच्छं' कहकर एवं घुटनों के बल बैठकर एक नमस्कारमन्त्र पूर्वक दशवैकालिकसूत्र के प्रारम्भिक तीन
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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