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________________ कल्पत्रेप-विधि का सामाचारीगत अध्ययन ...381 कल्पत्रेप (छहमासिक कल्प उतारने) सम्बन्धी नियम जिस दिन कल्पत्रेप क्रिया करनी हो उस दिन कल्पत्रेपक मुनि शुभ निमित्त में उपयोगवन्त बने। फिर गृहस्थ के घर जाकर अखण्ड वस्त्र से बंधे हुए पात्र में से प्रासक जल लेकर आये। उस दिन योगिनी कल्पत्रेप करने वाले मनि की पीठ के पीछे अथवा उसके बायीं ओर होनी चाहिए। फिर उक्त स्थिति में लाए हुए जल के द्वारा मुख-हाथ एवं पाँवों को गीला करें। फिर सभी साधुजन बड़ेछोटे के क्रम से छह माह की शुद्धि करें। सर्वप्रथम जिन मुनियों को छहमासिक कल्प उतारना हो, वे श्वासोश्वास को रोकते हुए रजोहरण की दसिया आदि को जल से गीली करें, फिर उन गीली दसियों के द्वारा पहले चार बँद मुख पर डालें, उसके बाद चार बूंद पैरों पर डालें। यहाँ बूंद डालते समय हाथ विन्यास की क्रिया गुरु परम्परागत उपदेश से जाननी चाहिए। ___ छहमासिक कल्प उतारते या शुद्धि करते समय दूसरों के द्वारा दी गई जल की बूंदों को ही ग्रहण करें, इसके अतिरिक्त कृत्यों में शुद्धि करते समय रजोहरण की दसियों के द्वारा दी गई, मुखवस्त्रिका के आंचल द्वारा दी गई अथवा दूसरे की कोहनी द्वारा दी गई जल बूंदे ग्रहण कर सकते हैं। छह महीने की शुद्धि करते वक्त जो साधु खड़े होकर कल्पत्रेप कर रहे हैं उनके लिए दूसरे साधु खड़े होकर ही जल की बूंदे दें और जो साधु बैठकर कल्पत्रेप कर रहे हैं उनके लिए अन्य साधु बैठे हुए ही जल की बूंदें दें। सामान्यकल्प में यह नियम नहीं है। मुख एवं पाँवों की शद्धि कर लेने के पश्चात ज्ञान सम्बन्धी उपकरणों को छोड़कर वसति और पात्रोपकरण सभी की जल बूंदों से शुद्धि करें। विशेष इतना है कि भोजनमंडली के स्थान को गोबर से लीपकर शुद्ध करें तथा छह माह के भीतर उपयोग में लिए गए पात्र, पूंजणी, प्रमार्जनिका (दंडासन) आदि को स्वर्ण एवं राख आदि के मिश्रित जल द्वारा शुद्ध करें। इसी क्रम में वसति का शोधन करें तथा उपाश्रय की चारों दिशाओं में सौसौ हाथ तक की भूमि पर अस्थि-रुधिर-विष्टा आदि किसी प्रकार के अशुचि द्रव्य गिरे हुए हों तो उन्हें अन्य स्थान पर विसर्जित करें। उसके बाद स्वाध्याय प्रस्थापन विधि करें। स्वाध्याय उत्क्षेपण (प्रस्थापन) विधि विधिमार्गप्रपा के अनुसार स्वाध्याय उत्क्षेपण विधि इस प्रकार है
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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