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380... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
1. शास्त्रोक्त विधि करना 2. प्रक्षालन पूर्वक शरीर आदि की शुद्धि करना और 3. आचार की शुद्धि करना ।
संक्षेप में कहें तो वसति - पात्र - शरीर आदि की प्रक्षालन पूर्वक शुद्धि करना तथा इसी बाह्य शुद्धि के आधार पर ज्ञानाचार आदि पंचाचार की शुद्धि करना कल्पत्रेप है। 3
कल्पत्रेप की गीतार्थ विहित परिभाषाएँ
जैन साहित्य में कल्पत्रेप की निम्नोक्त परिभाषाएँ प्राप्त होती हैं1. योगोद्वहन के समय उपयोगी स्थान, वस्त्र, पात्र आदि को शुद्ध रूप से ग्रहण करना कल्पत्रेप है ।
2. मुनि जीवन की आचार प्रधान क्रियाओं में लगने वाले दोषों को दूर करना कल्पत्रेप है।
3. ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार एवं वीर्याचार - इन पंचाचार को दूषित करने वाले अनुपयोग, अविवेक, आलस्य आदि को दूर करना कल्पत्रेप है।
4. मुनिधर्म का निर्वहन करते हुए सामाचारी प्रधान नियमों का अनुपालन करना कल्प है।
5. ज्ञानाचार की सम्यक आराधना करने के लिए मन-वचन-काया की शुद्धि रखना कल्पत्रेप है।
6. आगम-शास्त्रों को अधिकृत करने एवं स्वयं को तद्योग्य बनाने हेतु बाह्य वातावरण को पवित्र रखना कल्पत्रेप है।
कल्पत्रेप के माध्यम से योगवाही के आस-पास का वातावरण निर्मल होता हैं, भावनाएँ पवित्र बनती हैं और चित्त की एकाग्रता बढ़ती है जिससे समस्त प्रकार की आराधनाएँ सार्थक होती हैं। अतः कल्पत्रेप क्रिया करने योग्य है। कल्पत्रेप के लिए शुभदिन
विधिमार्गप्रपा के अनुसार यह कल्पत्रेप क्रिया वैशाख और कार्तिक मास की प्रतिपदा के पश्चात जब भी गुरुवार या सोमवार के दिन पुष्य-हस्तअभिजित या अश्विनी नक्षत्र हो, उस श्रेष्ठ दिन में करनी चाहिए |