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362... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण अनुज्ञा की क्रिया करें तथा एक कालग्रहण लें और नीवि तप करें। इसकी विधि में सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करें।
दसवें दिन से लेकर अठारहवें दिन तक क्रमश: दशाश्रुत के दो से लेकर दस अध्ययनों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया पूर्ववत करें। प्रतिदिन एक-एक कालग्रहण लें एवं नीवि तप करें। इसकी विधि में सभी क्रियाएँ तीनतीन बार करें।
उन्नीसवें दिन योगवाही कल्प-व्यवहार-दशासूत्र के श्रुतस्कन्ध की समुद्देश क्रिया करें तथा एक कालग्रहण लें और आयंबिल तप करें। इसकी विधि में सभी क्रियाएँ एक-एक बार करें।
बीसवें दिन योगवाही कल्प-व्यवहार-दशासूत्र के श्रुतस्कन्ध की अनुज्ञा करें तथा एक कालग्रहण लें और आयंबिल तप करें। इसकी विधि में सभी क्रियाएँ एक-एक बार करें। जीतकल्प-पंचकल्पसूत्र योगविधि
पंचकल्पसूत्र के योग में एक दिन लगता है। इसके उद्देश-समुद्देश एवं अनुज्ञा हेतु आयंबिल तप करें तथा एक कालग्रहण लें। इसकी क्रियाविधि में सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करें। इस सूत्र योग में नंदी क्रिया नहीं होती है तथा यह योग तप मण्डली में वहन किया जाता है। ____ जीतकल्पसूत्र का योग नीवि तप द्वारा वहन किया जाता है। इसके उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा के लिए एक कालग्रहण लेते हैं, इसमें नंदी क्रिया नहीं होती है। इसकी विधि में योगवाही तीन बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना, तीन बार द्वादशावर्त वंदन, तीन बार खमासमणसूत्र पूर्वक वंदन तथा तीन बार कायोत्सर्ग करें।14 श्रीकल्प-व्यवहार-दशाश्रुतस्कन्ध, दिन-20, काल-20, नंदी-2
बृहत्कल्प, दिन-3, काल-3, नंदी-1
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दिन उद्देशक | क.व्य.दशा.श्रु.उ.नंदी
अ.उ.,1/2 कायोत्सर्ग
8 तप
आ.