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योग तप (आगम अध्ययन) की शास्त्रीय विधि ...361 जाते हैं तथा इन सूत्रों के योग क्रमशः निशीथ, कल्प, व्यवहार, दशाश्रुत एवं जीतकल्प की भाँति करवाये जाते हैं।13
बृहत्कल्पसूत्र की योगविधि इस प्रकार है
पहले दिन योगवाही कल्प-व्यवहार-दशा श्रुतस्कन्ध के उद्देश की क्रिया करें, फिर इन तीनों के अध्ययन के उद्देश की क्रिया करें। उसके बाद बृहत्कल्प के पहले-दूसरे उद्देशकों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें। इस दिन एक कालग्रहण लें, नंदी क्रिया और आयंबिल तप करें। इसकी विधि में सभी क्रियाएँ आठ-आठ बार करें।
दूसरे दिन योगवाही बृहत्कल्प के तीसरे-चौथे उद्देशकों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें। एक कालग्रहण लें और नीवि तप करें। इसकी विधि में सभी क्रियाएँ छह-छह बार करें।
तीसरे दिन योगवाही पाँचवें-छठवें उद्देशकों के उद्देश-समुद्देश की क्रिया करें, फिर कल्प अध्ययन का समुद्देश करें, उसके बाद पाँचवें-छठवें उद्देशकों एवं कल्प अध्ययन की अनुज्ञा करें। इन उद्देश आदि के निमित्त एक कालग्रहण लें और नीवि तप करें। इसकी विधि में सभी क्रियाएँ आठ-आठ बार करें। व्यवहारसूत्र की योग विधि निम्न है___ चौथे दिन योगवाही व्यवहार अध्ययन का उद्देश करें, फिर बृहत्कल्प अध्ययन के पहले-दूसरे उद्देशकों के उद्देश, समद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें तथा एक कालग्रहण लें और नीवि तप करें। इसकी विधि में सभी क्रियाएँ सातसात बार करें।
पाँचवें, छठवें एवं सातवें दिन क्रमश: तीसरे-चौथे, पाँचवें-छठवें, सातवें-आठवें उद्देशकों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें। इन दिनों एक-एक कालग्रहण लें और नीवि तप करें। इसकी विधि में सभी क्रियाएँ छहछह बार करें। __आठवें दिन योगवाही नवमें-दसवें उद्देशकों के उद्देश-समुद्देश की क्रिया करें, फिर व्यवहार अध्ययन का समुद्देश करें, फिर नौवें-दसवें उद्देशकों एवं बृहत्कल्प अध्ययन की अनुज्ञा करें तथा एक कालग्रहण लें और नीवि तप करें। इसकी विधि में सभी क्रियाएँ आठ-आठ बार करें।
दशाश्रुतस्कन्ध की योग विधि निम्नानुसार हैनौवें दिन योगवाही दशाश्रुत के प्रथम अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं