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________________ 360... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण निशीथसूत्र - आगाढ़योग, दिन- 10, काल 10 नंदी नास्ति दिन 1 2 3 4 5 6 7 8 उद्देशक नि.अ. 3/4 5/6 7/89/10/11/12/13/14/15/16/17/18 कायोत्सर्ग 7 6 6 6 6 6 6 6 9 6 8 आ. 10 19/20 नि. अनु. एवं समु. अनु. आ. तप आ. नी. आ नी. आ. नी. आ. नी. • विधिमार्गप्रपा एवं आचारदिनकर दोनों में तप क्रम समान हैं। दशाश्रुतस्कन्ध-बृहत्कल्प - व्यवहारसूत्र योग विधि • विधिमार्गप्रपा एवं आचारदिनकर के अनुसार दशासूत्र, बृहत्कल्पसूत्र एवं व्यवहारसूत्र तीनों का एक श्रुतस्कन्ध है । • दशाश्रुतस्कन्ध में दस अध्ययन हैं। ये अध्ययन उद्देशक रहित होने से इनके योग दस दिन में पूर्ण किए जाते हैं। दशाश्रुतस्कन्ध के दस अध्ययनों के नाम हैं- 1. असमाधिस्थान 2. शबल 3. आशातना 4. गणिसंपदा 5. आत्मसमाधि 6. उपासकप्रतिमा 7. भिक्षुप्रतिमा 8. पर्युषणाकल्प 9. मोहनीय स्थानादि 10. आयात स्थान। बृहत्कल्पसूत्र में छह उद्देशक हैं जिन्हें दो-दो के क्रम से तीन दिन में पूर्ण किया जाता है। • व्यवहारसूत्र में दस उद्देशक हैं। उन्हें भी दो-दो के क्रम से पाँच दिन में पूर्ण किया जाता है। श्रुतस्कन्ध के समुद्देश आदि में दो दिन लगते हैं। इस प्रकार दशाश्रुत योग के बारह दिन, बृहत्कल्प के तीन दिन और व्यवहार के पाँच दिन कुल तीनों योगों के बीस दिन होते हैं तथा इसमें दो बार नंदी होती है। • कुछ परम्पराएँ बृहत्कल्पसूत्र और व्यवहारसूत्र दोनों के भिन्न-भिन्न श्रुतस्कन्धों को मानती हैं। इस मान्यता के अनुसार उक्त तीनों सूत्रों के योग में बाईस दिन लगते हैं। कुछ लोग कल्प और व्यवहार को एक ही श्रुतस्कन्ध मानते हैं तथा कुछ लोग पंचकल्प के अनुसार व्यवहार एवं दशाश्रुतस्कन्ध को एक श्रुतस्कन्ध कहते हैं। • विधिमार्गप्रपा आदि प्राचीन सामाचारी के अनुसार आचारांग से समवायांग तक चार अंग सूत्रों के योग पूर्ण होने के पश्चात निशीथ, दशाश्रुत, कल्प, व्यवहार एवं जीत कल्प आदि पाँच छेदसूत्रों के योग बीच में करवाये
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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