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योग तप (आगम अध्ययन) की शास्त्रीय विधि ...359 •विधिमार्गप्रपा एवं आचारदिनकर दोनों ग्रन्थों के अनुसार निशीथ सूत्र के योग एकान्तर आयंबिल के द्वारा वहन किये जाते हैं अर्थात इस सूत्र योग में क्रमशः आयंबिल-नीवि इस क्रम से तप करते हैं।
• निशीथ सूत्र में श्रुतस्कन्ध न होने से नंदी नहीं होती है।
• विधिमार्गप्रपा एवं तपागच्छ आदि परम्पराओं के अनुसार इस सूत्र योग में दस दिन लगते हैं किन्तु आचारदिनकर में बारह दिनों का निर्देश है। इसमें निशीथ सूत्र के समुद्देश एवं अनुज्ञा के दो दिन अतिरिक्त माने गये हैं तथा इस सूत्र को श्रुतस्कन्ध के रूप में स्वीकार कर बारहवें दिन नन्दी क्रिया करने का भी उल्लेख किया गया है।12
निशीथ सूत्र की योगोद्वहन विधि इस प्रकार है
पहले दिन योगवाही निशीथ सूत्र के अध्ययन का उद्देश करें, फिर इस अध्ययन के प्रथम एवं द्वितीय उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें। इस दिन एक कालग्रहण लें और आयंबिल तप करें। इसकी विधि में सभी क्रियाएँ सात-सात बार करें।
दूसरे दिन योगवाही तीसरे और चौथे उद्देशक के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें। इसके निमित्त एक कालग्रहण लें एवं नीवि तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ छह-छह बार करें। ___तीसरे दिन से लेकर नौवें दिन तक पाँच से अठारह उद्देशकों को दो-दो के क्रम से दूसरे दिन की भाँति सम्पन्न करें। इन दिनों एकान्तर आयंबिल और नीवि तप करें। प्रतिदिन एक-एक कालग्रहण लें तथा इसकी विधि में प्रत्येक क्रियाएँ छह-छह बार करें।
दसवें दिन योगवाही सबसे पहले उन्नीसवें एवं बीसवें उद्देशकों के उद्देशसमुद्देश की क्रिया करें, फिर निशीथ अध्ययन का समुद्देश करें, उसके बाद उन्नीसवें-बीसवें उद्देशकों एवं निशीथ अध्ययन की अनुज्ञा विधि करें। एक कालग्रहण लें और आयंबिल तप करें। इसकी विधि में सभी क्रियाएँ आठ-आठ बार करें।
इस प्रकार निशीथसूत्र के योगोद्वहन में बारह दिन लगते हैं।