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________________ योग तप (आगम अध्ययन) की शास्त्रीय विधि ...357 करें, फिर आदि अन्त ऐसे दो भागों में दस अध्ययनों एवं वर्ग की अनुज्ञा करें। इन उद्देश आदि के निमित्त इस दिन एक काल का ग्रहण करें, नंदी क्रिया और आयंबिल तप करें। इसकी क्रियाविधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ दस-दस बार करें। दूसरे दिन योगवाही द्वितीय वर्ग एवं उसके आदि के पाँच एवं अन्त के पाँच-ऐसे दस अध्ययनों के उद्देश की क्रिया करें। फिर दो भागों में विभक्त करके दस अध्ययनों के समुद्देश की क्रिया करें, फिर द्वितीय वर्ग का समुद्देश करें। उसके बाद दो भागों में विभक्त दस अध्ययनों एवं द्वितीय वर्ग की अनुज्ञा विधि करें। इस दिन एक कालग्रहण लें और नीवि तप करें। इसकी विधि में सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करें। तीसरे दिन से लेकर पाँचवें दिन तक क्रमश: तृतीय से पंचम वर्ग पर्यन्त के अध्ययनों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें। प्रतिदिन एक-एक कालग्रहण लें और नीवि तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ नौ-नौ बार करें। छठवें दिन योगवाही निरयावलिका श्रुतस्कन्ध के समुद्देश की क्रिया करें तथा एक कालग्रहण लें और नीवि तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ एक-एक बार करें। सातवें दिन योगवाही श्रुतस्कन्ध की अनुज्ञा करें। एक कालग्रहण लें, नन्दी क्रिया और आयंबिल तप करें। शेष क्रिया एक-एक बार करें। इस प्रकार निरयावलिका श्रुतस्कन्ध के योग सात दिन में पूर्ण होते हैं और दो नंदी होती है। औपपातिक आदि चार उपांग, अनागाढ़ योग, प्रत्येक में तीन-तीन कुल बारह आयंबिल, दिन-12, नंदी-8 उपांग नाम आचारांग | प्रतिबद्ध | औपपातिक | सूत्रकृतांग | प्रतिबद्ध | राजप्रश्नीय दिन उ.नंदी1 | समु.2 | अनु.नं.3 | उ.नंदी1 | समु.2 | अनु.नंदी 3 कायोत्सर्ग 1 1 | 1 आ. आ. | आ. उपांग नाम | स्थानांग | प्रतिबद्ध | जीवाभिगम | समवायांग | प्रतिबद्ध | प्रज्ञापना दिन - | उ.नंदी1 समु.2 अनु.नंदी3 उ.नंदी1 समु.2 | अनु.नंदी कायोत्सर्ग | आ. | | आ. . आ. | आ. आ. आ. तप आ. आ. आ. तप
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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