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356... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
आचारदिनकर के मतानुसार निरयावलिका उपांग सूत्र को छोड़कर अन्य उपांग सूत्रों के योग में नन्दीक्रिया नहीं होती है। निरयावलिका को छोड़कर सभी उपांगों की क्रिया में एक बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करें, एक बार द्वादशावर्त्त वन्दन करें, एक बार खमासमणसूत्र पूर्वक वन्दन करें और एक बार कायोत्सर्ग करें। 11
आठवें से बारहवें उपांगसूत्रों की तप विधि
• अन्तकृतदशा, अनुत्तरोपपातिकदशा, प्रश्नव्याकरण, विपाकश्रुत, दृष्टिवाद-इन पाँच अंग सूत्रों का एक उपांग है। उसका नाम निरयावलिका सूत्र है ।
• अन्तकृतदशांग आदि पाँच अंगों से प्रतिबद्ध निरयावलिका-उपांग में एक श्रुतस्कन्ध है। इसके पाँच वर्गों के नाम ये हैं- 1. कल्पिका 2. कल्पावतंसिका 3. पुष्पिका 4 पुष्प चुलिका 5. वह्निदशा । इनमें प्रथम, द्वितीय, तृतीय एवं चतुर्थ वर्ग में दस-दस अध्ययन हैं और पंचम वर्ग में बारह अध्ययन हैं।
• प्रथम वर्ग में काल आदि अध्ययन हैं, दूसरे वर्ग में पद्मादि अध्ययन हैं, तीसरे वर्ग में चन्द्रादि अध्ययन हैं, चौथे वर्ग में श्रीदेवी आदि अध्ययन हैं, पाँचवें वर्ग में निषद्ध आदि अध्ययन हैं।
• इस सूत्र के योग करते समय पाँच वर्ग में पाँच दिन और उपांग के समुद्देश आदि में दो दिन कुल सात दिन लगते हैं।
• कुछ परम्पराओं में निरयावलिका श्रुतस्कन्ध के योग में सात आयंबिल करते हैं।
• किन्हीं परम्पराओं में निरयावलिका श्रुतस्कन्ध के उद्देश - समुद्देश एवं अनुज्ञा दिन में आयंबिल करते हैं तथा अन्य दिनों में नीवि करते हैं।
कोई आचार्य चन्दप्रज्ञप्ति और सूर्यप्रज्ञप्ति सूत्रों को भगवती का उपांग सूत्र मानते हैं। उनके मतानुसार उपासकदशासूत्र से लेकर विपाकसूत्र पर्यन्त पाँच अंगों का उपांग निरयावलिका सूत्र है।
निरयावलिक सूत्र की योग विधि यह है
पहले दिन योगवाही निरयावलिका के श्रुतस्कन्ध, उसके प्रथम वर्ग एवं उसके आदि के पाँच एवं अन्त के पाँच - ऐसे दस अध्ययनों के उद्देश की क्रिया करें। उसके बाद दस अध्ययनों के समुद्देश की क्रिया करें, फिर वर्ग का समुद्देश