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योग तप (आगम अध्ययन) की शास्त्रीय विधि ...355 की अपेक्षा दो प्रकार से लेकर दस प्रकार तक नौ प्रतिपत्तियाँ हैं।
चतुर्थ उपांग प्रज्ञापनासूत्र में छत्तीस पद हैं। उन पदों के नाम ये हैं1. प्रज्ञापना पद 2. स्थान पद 3. बहुवक्तव्यता पद 4. स्थिति पद 5. विशेष पद 6. व्युत्क्रान्ति पद 7. उच्छवास पद 8. आहारादि दससंज्ञापद 9. योनि पद 10. चरम पद 11. भाषा पद 12. शरीर पद 13. परिणाम पद 14. कषाय पद 15. इन्द्रिय पद 16. प्रयोग पद 17. लेश्या पद 18. कायस्थिति पद 19. सम्यक्त्व पद 20. अन्तक्रिया पद 21. अवगाहना पद 22. क्रिया पद 23. कर्म पद 24. कर्मबन्धक पद 25. कर्मवेदक पद 26. वेदकबन्ध पद 27. वेदक पद 28. आहार पद 29. उपयोग पद 30. पश्यता पद 31. मनोविज्ञान संज्ञा पद 32. संयम पद 33. अवधि पद 34. परिचारणा पद 35. वेदना पद और 36. समुद्घात पद। पाँचवें से सातवें उपांग सूत्रों की तप विधि
• सूर्यप्रज्ञप्ति नामक पाँचवें उपांग सूत्र को भगवती सूत्र के योगोद्वहन काल में तीन काल ग्रहण एवं तीन आयंबिल के द्वारा आउत्तवाणय पूर्वक वहन करना चाहिए अथवा भगवतीसूत्र की अनुज्ञा होने के पश्चात इसी अनुज्ञा के निमित्त गृहीत संघट्टे के मध्य में तीन कालग्रहण और तीन आयंबिल के द्वारा किया जाता है।
• इसी प्रकार जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति नामक छठे उपांग सूत्र को ज्ञाताधर्मकथा के योगकाल में अथवा उसकी अनुज्ञा के पश्चात तीन कालग्रहण एवं तीन आयंबिल के द्वारा संघट्टापूर्वक वहन किया जाता है।
• चन्द्रप्रज्ञप्ति नामक सातवें उपांगसूत्र को उपासक दशा के योगकाल में अथवा उसकी अनुज्ञा के पश्चात तीन कालग्रहण एवं तीन आयंबिल के द्वारा संघट्टापूर्वक वहन किया जाता है।
विशेष- सूर्यप्रज्ञप्ति आदि उक्त तीनों उपांग कालिक सूत्र हैं अतः संघट्टा के साथ ग्रहण किए जाते हैं। कालिक सत्रों के योग में ही संघट्टा होता है, उत्कालिक सूत्रों के योग में संघट्टा विधि नहीं होती है।
सूर्यप्रज्ञप्ति और चन्द्रप्रज्ञप्ति में बीस प्राभृत आदि हैं। प्रथम प्राभृत में आठ प्राभृत-प्राभृतादि, दूसरे में तीन, दसवें में बाईस हैं तथा शेष प्राभृत एक समान हैं। जंबूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र भी एक समान है यानी इसमें अध्ययन वर्गादि नहीं हैं।