SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 412
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 354... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण • समवायांगसूत्र के योगोद्वहन के मध्य चौथा उपांग प्रज्ञापनासूत्र को वहन किया जाता है। इसके उद्देश-समुद्देश एवं अनुज्ञा हेतु तीन आयंबिल किए जाते हैं। विशेष- औपपातिक आदि चारों उपाङ्ग उत्कालिकसूत्र हैं। विधिमार्गप्रपा एवं आचारदिनकर के अनुसार सामान्यतया बारह उपांगसूत्रों के योग अनुक्रमश: ग्यारह अंगसूत्रों के योगकाल के मध्य वहन किए जाते हैं। जैसे प्रथम अंगसूत्र के योगोद्वहन के बीच पहले उपाङ्गसूत्र के योग, तृतीय अंगसूत्र के बीच तीसरे उपाङ्गसूत्र के योग- इस प्रकार एक के मध्य एक उपांगसूत्र के योग किए जाते हैं। मतान्तर से औपपातिक उपांगसूत्र का योग आचारांगसूत्र की अनुज्ञा होने के पश्चात, अनुज्ञा के निमित्त लिए गए संघट्टे के मध्य ही तीन आयंबिल के द्वारा किया जाता है। अन्य परम्परानुसार आचारांग आदि सूत्रों के योगोद्वहन के मध्य में नीवि के दिन आयंबिल करने से तीन आयंबिल की पूरिपूर्ति हो जाती है।10 इस प्रकार एक ही दिन में आयंबिल द्वारा उद्देश-समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया कर सकते हैं। फिर उस दिन उसके निमित्त से बारह बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना, बारह बार द्वादशावर्त्तवन्दन, बारह बार खमासमणसूत्र पूर्वक वन्दन और बारह बार कायोत्सर्ग करें। इसी तरह सूत्रकृतांगसूत्र की अनुज्ञा के पश्चात राजप्रश्नीय उपांग को एवं स्थानांगसूत्र की अनुज्ञा के पश्चात जीवाभिगम उपांग को वहन करना चाहिए। इसी तरह समवायांगसूत्र के योग पूर्ण हो जाने के पश्चात और दशाश्रुतस्कन्धबृहत्कल्प एवं व्यवहारसूत्र के श्रुतस्कन्ध की अनुज्ञा के दिन, गृहीत संघट्टा के साथ ही तीन आयंबिल के द्वारा, मतान्तर से एक आयंबिल के द्वारा प्रज्ञापना उपांग सूत्र को वहन करना चाहिए। किन्हीं मत से औपपातिक आदि चार उपांग सूत्रों के योग, महानिशीथसूत्र के योग पूर्ण करने के पश्चात एक साथ कर सकते हैं अथवा अलग-अलग भी कर सकते हैं। किसी कारणवश कल्पसूत्र के योग पूर्ण करने के बाद भी करवाये जाते हैं। आचारांगसूत्र के योग पूर्ण करने के बाद भी करवाये जाते हैं तथा इन चारों से सम्बन्धित अंग सूत्र के योग पूर्ण करने के बाद भी इन्हें वहन कर सकते हैं। __उक्त औपपातिक आदि चार उपांग सूत्रों में प्रारम्भ के तीन सूत्र एक समान हैं अर्थात उनमें अध्ययन-उद्देशादि नहीं है। यद्यपि जीवाभिगम सूत्र में जीव कथन
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy