SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 411
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ योग तप (आगम अध्ययन) की शास्त्रीय विधि ...353 तेरहवें दिन योगवाही विपाकसूत्र की अनुज्ञा विधि करें तथा एक काल ग्रहण, नंदी क्रिया और आयंबिल तप करें। शेष क्रियाएँ तीन-तीन बार करें। इस प्रकार विपाकश्रुतांग के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के योग में कुल तेरह दिन एवं तीन नंदी होती हैं। दोनों श्रुतस्कन्ध के योग में कुल चौबीस दिन और पाँच नंदी होती हैं। श्री विपाकश्रुत - द्वितीय श्रुतस्कन्ध, दिन- 13, काल - 13, दिन 1 अध्ययन द्वि. श्रु. उ. नंदी, कायोत्सर्ग तप दिन अध्ययन | कायोत्सर्ग तप अ. 1 4 आ. 0000 10 10 3 नी. 22 3 नी. F 3 3 आ. 3 नी. F 4 1 आ. st 4 11 12 13 श्रु. समु.अनु, अं.समु. अं. अनु नंदी नंदी 1 आ. 55 5 3 3 नी. नी. 6 CO CO 6 नंदी - 3 77 ∞ ∞ 8 • आचारदिनकर के अनुसार तप क्रम दशवैकालिकसूत्र के यन्त्रवत समझें। उपाङ्गसूत्रों की योगविधि 8 9 9 3 3 3 3 नी. नी. नी. नी. प्रारम्भ के चार उपांगसूत्रों की तपविधि • आचारांगसूत्र के योगोद्वहन काल में पहला उपांग औपपातिकसूत्र का वहन किया जाता है। इस सूत्र के उद्देश- समुद्देश एवं अनुज्ञा हेतु तीन आयंबिल किए जाते हैं। • सूत्रकृतांगसूत्र के योगोद्वहन काल में दूसरा उपांग राजप्रश्नीयसूत्र का वहन किया जाता है। इस उपांग के उद्देश- समुद्देश एवं अनुज्ञा हेतु तीन आयंबिल किए जाते हैं। • स्थानांगसूत्र के योगोद्वहन काल में तीसरा उपांग जीवाजीवाभिगमसूत्र के योग किए जाते हैं तथा इसके उद्देश- समुद्देश एवं अनुज्ञा हेतु तीन आयंबिल करते हैं।
SR No.006245
Book TitleAgam Adhyayan Ki Maulik Vidhi Ka Shastriya Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages472
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy