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352... आगम अध्ययन की मौलिक विधि का शास्त्रीय विश्लेषण
श्रीविपाकश्रुत प्रथम श्रुतस्कन्ध-अनागाढ़ योग, दिन- 11, नंदी - 2, अंग- 11, अध्ययन - 10
दिन
अध्ययन
कायोत्सर्ग
तप
1
अं.उ., नंदी श्रु. उ.,
अ. 1
5
आ.
2 2
3 3
44
5 5
6 6
5
~~
F
7
7
∞ ∞
F
8
8
6 6
F
9
9
3 3
3 3 3 3
3
3
नी. नी. नी. नी. नी. नी. नी. नी. नी.
3 F
काल - 11,
10 11
10 प्र.श्रु.
F
?
समु. अनु नंदी
2 55
आ.
• आचारदिनकर के अनुसार तप क्रम दशवैकालिकसूत्र के यन्त्रवत समझें।
द्वितीय श्रुतस्कन्ध
•
सुखविपाक नामक द्वितीय श्रुतस्कन्ध में दस अध्ययन उद्देशक रहित हैं। दस अध्ययनों के नाम ये हैं- 1. सुबाहु 2. भद्रनन्दी 3. सुजात 4. सुवासवकुमार 5. जिनदास 6. धनपति 7. महाबल 8. भद्रनन्दी 9. महचन्द्र 10. वरदत्त ।
सुखविपाक नामक द्वितीय श्रुतस्कन्ध की योगविधि निम्नानुसार है
पहले दिन योगवाही द्वितीय श्रुतस्कन्ध के उद्देश की क्रिया करें, फिर इसके प्रथम अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें। एक कालग्रहण लें, नंदी क्रिया और आयंबिल तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ चार-चार बार करें।
दूसरे दिन योगवाही द्वितीय अध्ययन के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें तथा एक काल ग्रहण ले एवं नीवि तप करें। इसकी विधि में पूर्ववत सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करें।
तीसरे दिन से लेकर दसवें दिन तक क्रमश: तृतीय से दस तक के अध्ययनों के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें। प्रतिदिन एक-एक कालग्रहण लें और नीवि तप करें। शेष क्रियाएँ तीन-तीन बार करें।
ग्यारहवें दिन द्वितीय श्रुतस्कन्ध के समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें तथा एक काल का ग्रहण करें, नंदी क्रिया और आयंबिल तप करें। शेष क्रियाएँ एकएक बार करें।
बारहवें दिन योगवाही विपाकसूत्र के समुद्देश की क्रिया करें तथा एक कालग्रहण लें और आयंबिल तप करें। शेष क्रियाएँ एक-एक बार करें।