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योग तप (आगम अध्ययन) की शास्त्रीय विधि ...351
विपाकश्रुत योग विधि प्रथम श्रुतस्कन्ध
• यह ग्यारहवाँ अंग सत्र है। इसमें दो श्रृतस्कन्ध हैं। प्रथम दःखविपाक नामक श्रुतस्कन्ध में दस अध्ययन हैं। ये अध्ययन उद्देशक रहित हैं अत: एक अध्ययन एक दिन में पूर्ण हो जाता है। दस अध्ययनों में दस दिन एवं अंग सूत्र के समुद्देश आदि में एक दिन, ऐसे इस सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध के योग कुल ग्यारह दिन में पूर्ण होते हैं।
• दुःखविपाक श्रुतस्कन्ध के दस अध्ययनों के नाम हैं- 1. हिंसाद्वार 2. मृषावादद्वार 3. स्तेनअदत्तद्वार 4. मैथुनद्वार 5. परिग्रहद्वार 6. अहिंसाद्वार 7. सत्यद्वार 8. अस्तेयद्वार 9. ब्रह्मचर्यद्वार 10. अपरिग्रहद्वार।
विपाक सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध की योगविधि निम्नोक्त हैं___पहले दिन योगवाही विपाक सूत्र एवं प्रथम श्रुतस्कन्ध के उद्देश की क्रिया करें। उसके बाद प्रथम अध्ययन के उद्देश,समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें। इसी के साथ एक कालग्रहण लें, नंदी क्रिया और आयंबिल तप करें। इसकी विधि में पाँच बार मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना, पाँच बार द्वादशावर्त्तवंदन, पाँच बार खमासमणा सूत्र द्वारा वन्दन और पाँच बार कायोत्सर्ग करें।
दूसरे दिन योगवाही द्वितीय श्रुतस्कन्ध के उद्देश, समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें तथा एक कालग्रहण लें और नीवि तप करें। इस विधि की सभी क्रियाएँ तीन-तीन बार करें।
तीसरे दिन से लेकर दसवें दिन तक क्रमश: तीसरे से दसवें तक के अध्ययनों के उद्देश,समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया द्वितीय अध्ययन के समान पूर्ण करें। प्रतिदिन एक-एक काल ग्रहण लें और नीवि तप करें। इस विधि की सभी क्रियाएँ पूर्ववत तीन-तीन बार करें। __ग्यारहवें दिन दुःखविपाक श्रुतस्कन्ध के समुद्देश एवं अनुज्ञा की क्रिया करें। एक कालग्रहण लें, नंदी क्रिया और आयंबिल तप करें। इस विधि की सभी क्रियाएँ दो-दो बार करें।
इस प्रकार विपाकश्रुत के प्रथम श्रुतस्कन्ध के योग में कुल ग्यारह दिन एवं दो नंदी होती हैं।